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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012



कवि श्री गाफिल स्वामी जी को "निरूपमा प्रकाशन" से प्रकाशित उनके काव्य संग्रह
"जय हो भ्रष्टाचार की"
प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई।



पुस्तक समीक्षा

वर्तमान परिवेश में "भ्रष्टाचार" एक ऐसा मुद्दा है जो ढलान पर अनियंत्रित वाहन की तरह गति पकड‌ चुका है। विषय विशेष पर इतना अधिक लिखना विरले लोग ही कर पाते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन से कवि ने सदियों तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। किसी कविता में कुछ अलग हटकर लिखा हो तो उस विशेष कविता की चर्चा अनिवार्य हो जाती है। लेकिन इस पुस्तक में प्रत्येक कविता विशेष होने के कारण किसी खण्डकाव्य का अर्क प्रतीत होती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश असंभव सा लगता है। लेकिन मैं यह बात दावे से कह सकता हूँ कि कोई भी भ्रष्टाचारी इस पुस्तक को पढने के बाद अपने जीवन में सुधार की संभावनाएं अवश्य ही तलाशेगा।
वरिष्ठ कवि श्री गाफिल स्वामी जी एक अच्छी सोच और सार्थक प्रयास के साथ निर्विवाद रूप से बधाई के पात्र हैं। उनकी यह पुस्तक निःसंदेह पठनीय एवं संकलन योग्य है।


कवि सुधीर गुप्ता "चक्र"

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

मिलने का मौसम है

मिलने का मौसम है नजर मिलाकर मिल।
कल किसने देखा है अब ही आकर मिल॥

दुनियां का हर दर्द छुपा है इस दिल में,
तू भी अपना दर्द साथ में लाकर मिल॥

मंदिर मस्जिद गिरजाघर में क्या रक्खा,
माँ के चरणों में नित शीश झुकाकर मिल॥

सुखियों से तो मिलते हैं सब लोग यहाँ,
दुखियों को भी दिल से कभी लगाकर मिल॥

नफरत और क्रोध की ज्वाला में मत जल,
मन में दीप प्यार के सदा जलाकर मिल॥

जीते जी फुर्सत न कभी होगी तेरी,
हरि सुमिरन में भी कुछ वक्त बिताकर मिल॥

दुनिया दीवानी होगी तेरी 'गाफिल',
मन के सारे भेद-भाव बिसरा कर मिल॥

झूठ का है बोल-बाला

झूठ का है बोल-बाला कलयुगी संसार में।
नाव सच की डगमगाती चल रही मझधार में॥

सभ्यता सद्‌ आचरण की उड़ रही हैं धज्जियां,
आदमीयत अब नजर आती नहीं व्यवहार में॥

पेट की खातिर कहें या शौक की खातिर कहें,
हो रहा है जिस्म का सौदा सरे बाजार में॥

प्यार पैसे की हवस में आदमी अंधा हुआ,
खून के रिश्ते कलंकित हो रहे हैं प्यार में॥

सोच दूषित भाव दूषित कर्म दूषित हो गये,
आदमी ने खत्म कर दी जिन्दगी बेकार में॥

है जमाना आज कल चालाक औ खुदगर्ज का,
फिर भी हम 'गाफिल' रहे बस यार के दीदार में॥

सदा नेह बरसाया माँ ने

अपना दूध पिलाकर मेरा, तन-मन पुष्ट बनाया माँ ने।
जब भी मैं रोया चिल्लाया, छाती से चिपकाया माँ ने॥

घुटुअन चला गिरा पुचकारा, चोट लगी सहलाया माँ ने।
धीरे-धीरे बडा‌ हुआ मैं, उँगली पकड चलाया माँ ने॥

भूखी रही बाद में खाया, पहले मुझे खिलाया माँ ने।
गीले में सोई महतारी, सूखे मुझे सुलाया माँ ने॥

नजर न लगे किसी की मुझको, टीका रोज लगाया माँ ने।
घर से बाहर जब भी निकला, सिर पर हाथ फिराया माँ ने।

पढ‌ने गया पाठशाला में, ले-ले कर्ज पढा‌या माँ ने।
पास हुआ तो खुशी हुई माँ, फेल हुआ समझाया माँ ने॥

कभी झूठ बोला तो मारा, केवल सच सिखलाया माँ ने।
शादी योग्य हुआ की शादी, इंसा मुझे बनाया माँ ने ॥

सास-बहू में तू-तू मैं-मैं हुई, हमेशा छुपाया माँ ने।
गाली खायी अश्क बहाए, फिर भी नहीं बताया माँ ने।

मैं तो कर्ज चुका ना पाया, मेरा कर्ज चुकाया माँ ने।
मरते दम तक दी आशीषें माँ ने, सदा नेह बरसाया माँ ने॥

हम

घर में आटा दाल नहीं है।
फिर भी मन कंगाल नहीं है॥

माँ माटी को नमन करें नित,
हम जैसा तो लाल नहीं है॥

हम मेहनत-इज्जत की खाते,
हम पर जुडता माल नहीं है॥

हम हैं सच्चे पथ के राही,
अपनी टेढी‌ चाल नहीं है।

हम पर दर्दो का है पहरा,
मद माया का जाल नहीं है॥

हम हैं प्रश्न हम ही हैं उत्तर,
हमसे बडा‌ सवाल नहीं है॥

सेवा और प्रेम में 'गाफिल',
बद है पर बदहाल नहीं है॥

मुक्तक

(१)
जो शहीद हो गये वतन पर वो कुछ ही अवतार हुये।
उनमें राजगुरू ऊधम और भगतसिंह सरदार हुये॥
निशदिन याद करें हम उनको नित उठ उनको करें नमन॥
जिनके कारण आजादी के स्वप्न सभी साकार हुये॥

(२)
वीर शहीदों की कुर्बानी भूले सुख पाने वाले।
अब तो केवल मौज ले रहे सत्ता में आने वाले॥
भ्रष्टाचार और घोटाले भारत की पहिचान बने,
देश बेच कर खा जायेंगे दुष्ट भ्रष्ट खाने वाले॥

(३)
धर्म कर्म और संस्कार अब नजर न आते।
भोग विलासी लोग हुये सब मजे उडा‌ते॥
मिट्टी में मिल गईं मान मर्यादायें अब,
पैसे प्यार में 'गाफिल' जीवन भर भरमाते॥

मुक्तक

जिन्दगी और मौत का सच जान लेगा जो।
वक्त और इंसान को पहचान लेगा जो॥
जिन्दगी जीयेगा वो ही शान से 'गाफिल',
मौत से मिलने की मन में ठान लेगा जो॥


चाह कर भी जिन्दगी से मिल न पाये।
वक्त के भी साथ में हम चल न पाये॥
हमने जीवन भर छला है हर किसी को,
मौत से हारे उसे हम छल न पाये॥


हम पुजारी सत्य के है कर्म से नाता।
प्रेम और सौहार्द्र का जीना हमें भाता॥
वक्त से कह दो कि दे वो साथ सच का,
झूठ से मिलने कभी भी सच नहीं जाता॥


मौत से डर कर न जी वो एक दिन ही आयेगी।
जिन्दगी के सफर का संग आईना भी लायेगी॥
लाख करना मिन्नतें तेरी सुनेगी वो नहीं,
तू न जाना चाहेगा तो खींच कर ले जायेगी॥

मुक्तक

दिल में दर्द छुपाया हमने चेहरे पर मुस्कान रखी।
प्रथम मिलन में भी जीवन की हमने हर पहचान रखी॥
पुनर्मिलन की आस लिये हम मिले सभी से जीवन में,
विमुख हुये तो भी मर्यादा आन-बान और शान रखी॥


प्यार के हर रंग को स्वीकार कर देखो।
रंग नफरत का सदा दुत्कार कर देखो॥
जिन्दगी भर रंग की बरसात होगी,
प्यार से यदि प्यार का रंग डार कर देखो॥



जिन्दगी जीयो हमेशा मुस्कुराकर।
दर्द को भी देख लो अपना बनाकर॥
प्रेम से बढ़कर नहीं कुछ और जग में,
तोडना मत दिल किसी का दिल लगाकर॥