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सोमवार, 9 मई 2011

"अब भारत की बारी-"


(अभी हाल ही में अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया है, पूरे देश में जैसे एक ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी, हमारे देश के समस्त न्यूज़ चैनल अमेरिका की इस जीत पर ख़ुशी के ढोल बजाने लगे. परन्तु मैं सोचता हूँ इस तरह ढोल बजाने का हमारा कोई मतलब नही है, क्योंकि हमारी जेलों में सैकड़ों आतंकवादी आज भी बंद है, पर हमारी सरकार उन्हें आज तक भी कोई सजा नही दिला सकी है, और अफज़ल जैसे आतंकी जिसे फाँसी की सजा भी मिल चुकी है, उसे आज भी जेल में मटन और बिरयानी परोसी जा रही है. जब हम अपनी जेलों में कैद आतंकियों को भी सजा नही दे पा रहे है, तो हमें एक लादेन के मरने पर इतनी ख़ुशी क्यों हो रही है? जिस दिन जेल में पड़े सभी आतंकवादियों को सजा मिलेगी, वो दिन हमारे ढोल बजाने का दिन होगा, और उस दिन शायद मैं भी खुशियों के ढोल बजाऊंगा.
मैं एक रचना प्रस्तुत करता हूँ, अगर आपके दिल तक मेरे एहसास पहुंचे तो मुझे अवश्य सूचित करे.)
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अब तो अमेरिका ने ओसामा को भी मार दिया
और पाकिस्तानी चेहरे से भी नकाब उतर दिया
तो तुम क्यों बैठे हो चुपचाप आतंकी कडवाहट को चख कर
अफज़ल की  फाईल  को  राष्ट्रपति  की तिजोरी  में रख कर
अब तो तुम भी अफजल को फांसी देकर न्याय करो
उसको क्षमादान देकर न देश के साथ  अन्याय करो
तुम कसाब को जेल  में  बिरयानी जो  खिला रहे हो
उसकी सुरक्षा पर रूपया पानी की तरह जो बहा रहे है
ये नही है कोई बड़प्पन, बल्कि मुंह पर तमाचे है
लकड़ी के महल को  दीमक खा जाने वाले ढांचे है
कल कोई फिर विमान अपहरण कर तुमको धमकाएगा
विमान की रिहाई के बदले में  कसाब को मुक्त कराएगा
मत भूलो, पाकिस्तान ने भारत में आतंकी बीज बोये है
पिछले बीस सालों में हमने अस्सी हज़ार व्यक्ति खोये है
जवान बेटों की लाशें बूढ़े बापों के कन्धों ने भी ढोयी है
ना जाने  कितने सुहागनों  की आँखें  गम  में  रोई  है
उनके आंसुओं को भूलकर, तुम क्यों  ढोल बजा  रहे हो
एक ओसामा के मरने पर इतनी ख़ुशी क्यों मना रहे हो
यदि  तुम  इन आतंकी दरिंदों पर लगाम नहीं कस पायोगे
तो भारत की गलियों में एक नही दस-दस ओसामा पाओगे
तब तुम याद करोगे अपनी पिछली सब भूलों को
कैसे  पाला-पोषा था, तुमने  काँटें लदे  बबूलों  को
अब भी समय  है जागो, दुष्ट  पापियों का संहार  लिखो
राक्षसों के खून को प्यासी माँ भवानी की तलवार दिखो
क्षमादान देकर मत  पृथ्वीराज वाली भूल को दोहराओ
आतंक का  नाश कर वीर  शिवाजी के वंशज कहलाओ
कह  दो  सागर के  लहरों से, कह  दो  क्रूर  हवाओं  को
आँख उठा कर भी न देख ले कोई भारत की सीमाओं को
जागो मनमोहन पगड़ी सभाल कर जट सरदार बनो
लेकर  कृपाण  आतंकी  दुष्ट हवाओं  पर प्रहार  बनो
हिजबुल लश्कर के आगे अपनी पूंछ हिलाना बंद करो
आस्तीन  के जहरीले नागों को दूध पिलाना बंद करो
फिर ना संसद पर हमला हो, फिर ताज ना घायल हो
ट्रेन के  बम धमाके में, फिर  ना रोती कोई पायल हो
फिर ना कोई अपहरण कर आतंकियों को छुड़ाने की मांग आएगी
गर जेलों में  बंधक आतंकियों  की गर्दन  फाँसी पर टांगी जाएगी
मत रहना  इस भूल  में, अमेरिका  तुम्हारे  साथ होगा
मिटने आतंकी अंधियारे को, उसका भी कोई हाथ होगा
किसने पोंछा है पसीना, आक्रोश में दहकते अंगारों का
शेर  अकेला  ही शिकार  किया  करता  है  सियारों का
तो तुम एक बार  पुराने  असहाय दुर्बल  कानूनों को  झटका दो
अफज़ल, कसाब समेत सभी आतंकियों को शूली पर लटका दो
और तुम  सेना से  कह दो, माँ काली का रौद्र  रूप धरे
जहाँ मिले जो आतंकी, उसकी गर्दन धड से अलग करे
तो लाहौर, कराची, रावलपिंडी तक सेना को बढ़ जाने  दो
सीमा पार  आतंकी अड्डों पर  रणचंडी  को चढ़  जाने दो
दिखला दो  एक बार  दुष्ट पडौसी को उसकी औकात
काट डालो जिह्वा उसकी गर करे वो कश्मीर की बात
ओसामा की मौत पर  भारत  में जो  मातम  मना  रहे  है
और ओसामा-बिन-लादेन को अपना सुपर हीरो बना रहे है
उनको भी तुम एक बार उनकी औकातें दिखला  दो
राष्ट्रद्रोह की कोशिशों का परिणाम  उनको बतला दो
फिर देखो भारत  पर  कोई आतंकी  हमला  कैसे  हो  सकता है
और भारत की पवन भूमि पर कोई विष बीज कैसे बो सकता है
खात्मा कर आतंक का जन-जन में खुशियों के दीप जलाओ
और फिर पूरी दुनिया में अपनी  जीत के तुम  ढोल बजाओ


-विभोर गुप्ता (मोदीनगर)
09319308534

सोमवार, 2 मई 2011

सपने लिखते नयन पॄष्ठ पर

सपने लिखते नयन पॄष्ठ पर



नयनों के कागज़ पर सपने लिखते आकर नित्य कहानी
नई स्याहियां नया कथानक, बातें पर जानी पहचानी

नदिया का तट, अलसाया मन और सघन तरुवर की छाया
जिसके नीचे रखा गोद में अधलेटे से प्रियतम का सर
राह ढूँढ़ती घने चिकुर के वन में उलझी हुई उंगलियां
और छेड़तीं तट पर लहरें जलतरंग का मनमोहक स्वर

और प्यार की चूनरिया पर गोटों में रँग रही निशानी

भीग ओस में बातें करती हुई गंध से एक चमेली
सहसा ही यौवन पाती सी चंचल मधुपों की फ़गुनाहट
नटखट एक हवा का झोंका, आ करता आरक्त कली का
मुख जड़ चुम्बन, सहसा बढ़ती हुई अजनबी सी शरमाहट

और मदन के पुष्पित शर से बिंधी आस कोई दीवानी

मांझी के गीतों की सरगम को अपने उर से लिपटाकर
तारों की छाया को ओढ़े एक नाव हिचकोले खाती
लिखे चाँदनी ने लहरों को, प्रेमपत्र में लिखी इबारत
को होकर विभोर धीमे से मधुरिम स्वर में पढ़ती गाती

सुधि वह एक, दिशाओं से है बाँट रही उनकी वीरानी