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मंगलवार, 3 जनवरी 2012

"ब्रेल"

विश्व ब्रेल दिवस ४ जन. के अवसर पर ब्रेल पर एक कविता प्रस्तुत है.

दृष्टि हीन साथियों के लिए एक बेहतरीन यादगार होगी ये कविता, ऐसी मेरी आशा भी है और विश्वास भी.

"ब्रेल"

आँखो वाले क्या जाने,

पढ़कर क्या सुख हम पाते हैं

शब्दों को हम छूते हैं अक्सर

और शब्द हमें छू जाते है.


उभरे शब्दों को छूकर

महसूस हम कर जाते हैं

एक दूजे का अकेलापन

दूर सदा हम कर जाते हैं.


कुछ ब्रेल से हम हैं कहते,

कुछ ब्रेल हमें कह जाती है

दोनों के कहने सुनने से

नित नई कहानी बन जाती है.


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