काव्याकाश
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रविवार, 5 फ़रवरी 2012
सान्निध्य: दूल्हा राग बसंत
सान्निध्य: दूल्हा राग बसंत
: सभी राग बाराती हैं बस, दूल्हा राग बसंत। लोक गीत देहाती हैं सब, आल्हा राग बसंत।। हरसायेगी पवन बसंती सरदी का अब अंत। सूरज ने भी बदला है पथ ...
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