काव्याकाश
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बुधवार, 26 सितंबर 2012
सान्निध्य दर्पण: 'आकुल'
सान्निध्य दर्पण: 'आकुल'
: जब से मन की नाव चली। अँगना छूटा, घर गलियाँ भी।। पनघट कहाँ, कहाँ अठखेली, जमघट से बाजार पटे। बटवृक्षों की थाती इतनी, रिश्...
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