आज महिला दिवस है। मेरी ओर से नारी शक्ति को हार्दिक
शुभकामनाएँ।
मेरा एकमात्र प्रश्न यह है कि हमें महिला दिवस क्यों मनाना
पड़ रहा है? इसका उत्तर भी मैं ही देना चाहता हूँ। इस दिवस को मनाने का तात्पर्य यह है कि
महिलाओं को अहसास कराया जाए कि वह एक महिला हैं। जबकि हम बात करते हैं कि सभी
महिला और पुरूष कंधे से कंधे मिलाकर चलें और आज सभी को समान अधिकार मिले हुए हैं
तब एक अलग दिवस मनाने कि क्या आवश्यक्ता है?
आप इस बात का स्मरण करें कि एक विकलांग व्यक्ति है। वह
प्रतिदिन अपनी दैनिक दिनचर्या के सभी कार्य भलीभांति करता है इसलिए वह यह भूल चुका
है कि वह विकलांग है। लेकिन जब भी वर्ष में एक बार विकलांग दिवस मनाया जाता है तब
उसे अहसास होता है कि मैं विकलांग हूँ। ठीक इसी प्रकार से जब बराबरी की बात की
जाती है तब महिलाओं को क्यों अहसास कराया जाता है कि वह महिला हैं? यह परम सत्य है कि वह
महिला हैं किंतु सृष्टि के इस सच को दोहराने की क्या आवश्यक्ता है?
आज महिलाओं के विषय में जो तर्क दिये जाते हैं वह बेमानी
साबित हो रहे हैं। मैं केवल एक ही तर्क रखता हूँ उस पर जरा सोचिए- कि नारी को आप
किस रूप में मान्य करते हैं? नारी अभिशाप है अथवा वरदान? मत भिन्न हो सकते हैं पर निःसंदेह
जो भी जीव अथवा निर्जीव किसी को कुछ देता है तो वह वरदान ही हो सकता है अभिशाप
नहीं। नारी ने ब्रह्माण्ड की अमूल्य धरोहर मानव शक्ति को जन्म दिया है। नारी जब
हमें कुछ दे रही है तब वह वरदान ही है। ऐसे पुरूष जिनकी सोच का दायरा नारी के
प्रति सीमित है उनके लिए मैं कहना चाहता हूँ कि वह यदि सीता जैसी पत्नी चाहते हैं
तो अपने आचरण में राम जैसे संस्कार भी लाएँ।
अंत में अपनी बात को विराम देने से पहले यह कहना चाहता हूँ कि महिलाओं का
सम्मान मात्र महिला दिवस और कागजों तक ही न रहे। अपितु नारी के सम्मान को अपने
जीवन में आत्मसात करके संकल्प लें कि केवल महिला दिवस के दिन ही नहीं बल्कि
प्रत्येक दिन नारी का सम्मान हो। मैं दावा करता हूँ कि आप प्रयास तो कीजिए आपकी
भावनाएँ स्वतः ही बदल जाएंगी।