मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
सान्निध्य: आगत का स्वागत करो, विगत न जाओ भूल
सान्निध्य: आगत का स्वागत करो, विगत न जाओ भूल: 1- आगत का स्वागत करो, विगत न जाओ भूल उसको भी सम्मान से, करो विदा दे फूल करो विदा दे फूल, सीख लो जाते कल से तोड़ दिये यह भ्रम, बँध...
सोमवार, 16 दिसंबर 2013
सान्निध्य सेतु: 'आकुल' के लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्य आएगा !!' का ...
सान्निध्य सेतु: 'आकुल' के लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्य आएगा !!' का ...: पुस्तक 'अब राम राज्य आएगा' !!' का विमोचन करते अतिथि मंचासीन अतिथिगण 'आकुल' को 'भारतीय भाषा रत्न' से स...
बुधवार, 18 सितंबर 2013
सान्निध्य सेतु: 'आकुल' का लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्य आएगा !!' का ...
सान्निध्य सेतु: 'आकुल' का लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्य आएगा !!' का ...: 'आकुल' को *भारतीय भाषा रत्न* से भी सम्मानित किया जाएगा कोटा। फ्रेण्ड्स हेल्पलाइन, कोटा के सौजन्य से प्रकाशित डा0 गोपाल कृ...
मंगलवार, 13 अगस्त 2013
सान्निध्य दर्पण: गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा
सान्निध्य दर्पण: गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा: परिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है प रिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है। न् याय मिले बस इसीलिए आकाश हिला रखना है। द्र वित...
बुधवार, 19 जून 2013
पत्नी का फोटो
एक दिन दफ्तर में
मेरी एक मात्र
पत्नी का
बिना सूचना के
आगमन हुआ
उसके चेहरे पर
गुस्सा देख
मुझे
तूफान के पहले की
आंधी का आभास हुआ
अचानक
उसका हाव-भाव बदल
गया
गुस्से से लाल
चेहरा
फूल सा खिल गया
उसका
पाकिस्तान की तरह
इतनी जल्दी बदलाव
मेरी समझ में
नहीं आया
जब मैंने इसका
कारण पूछा
तो
मुस्कुराकर बोली
हे मेरे प्राणनाथ
मैं आपको कितना
गलत समझती थी
आपकी टेबिल पर
सुन्दर फ्रेम में
जड़ी हुई अपनी फोटो देखकर
मुझे आज पता चला
आप यूँ ही आहें
नहीं भरते हैं
मुझसे कितना
प्यार करते हैं
पति बोला
यह तुम्हारा भ्रम
है
टेबिल पर
तुम्हारी
फोटो लगाने का तो
दूसरा ही कारण है
तुम तो जानती हो
कि
मैं जनसम्पर्क
अधिकारी हूँ
प्रतिदिन
अच्छे और बुरे
लोगों से
मेरा पाला पड़ता
है
किसी-किसी दिन तो
लड़ना भी पड़ता है
तब किसी काम में
नहीं लगता है मन
इसलिए हो जाती है
टेंशन
तुम्हारी
फोटो पास रहेगी
तो
यह आभास होगा
क्या
तुमसे भी बड़ा कोई
टेंशन होगा
इस तरह
टेंशन की समस्या
सुलझ जायेगी
और
मेरी नौकरी आराम
से कट जायेगी।
शनिवार, 18 मई 2013
सान्निध्य: इंसान को ही खोजना होगा
सान्निध्य: इंसान को ही खोजना होगा: कल का काम आज ही, हो कैसे सफल। इंसान को ही खोजना, होगा इसका हल।। धूल भरी आँधियाँ, प्रकृति का गुस्सा है। सूरज का भी क़हर, पतझड़ ...
सोमवार, 13 मई 2013
सान्निध्य सेतु: ऐसे रचनाकारों का बहिष्कार करें
सान्निध्य सेतु: ऐसे रचनाकारों का बहिष्कार करें: ऐसा सुना भी था कि लोग गोष्ठियों में दूसरों की रचना पढ़ कर वाहवाही लूटते हैं। लाइब्रेरी से पुस्तकें चुराते हैं। यह उनका जुनून हो सकता ...
शनिवार, 11 मई 2013
सान्निध्य: ममता माँ की
सान्निध्य: ममता माँ की: माँ की आँखों से बहें, गंगा जमुना नीर। कभी न माँ को कष्ट दें, फूटे कभी न पीर। फूटे कभी न पीर, हाल हर देवें खुशियाँ। माँ का लें आशीष, ...
सोमवार, 22 अप्रैल 2013
सान्निध्य: मातृभूमि वंदना
सान्निध्य: मातृभूमि वंदना: जननी जन्मभूमि भारत माँ, तू है कृपानिधान। शत-शत बार प्रणाम करूँ, रखूँ सदा यह ध्यान।। प्रातस्स्मरणीय मात-पिता-गुरु-जन्मभूमि पर मान। ...
सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह
सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह: Bangluru Blast कभी आतंकियों से और कभी दुष्कर्मियों से। हैराँ है, पशेमाँ है वतन, इनकी बेशर्मियों से।। कैसा ज़ुनून है यह, कैसी हवा च...
सान्निध्य: ऐसा क्यों नहीं हो सकता
सोमवार, 25 मार्च 2013
सान्निध्य: किसलय दिनों की होली
सान्निध्य: किसलय दिनों की होली: याद आती है किसलय दिनों की होली। काठ कबाड़ लकड़े झाड़ी ऊपलों की माला ढेर करना होरी डाँड़े को गाड़ कर मोहल्ले में चंदा इकट्ठा...
सान्निध्य: होली के रंगों में
सान्निध्य: होली के रंगों में: होली के रंगों में भरना होगा यह संज्ञान बदरंग ना होगा जीवन का कोई भी सोपान जा पुरवाई उस घर जिसमें खामोशी पसरी है सूनी आँखों ...
सान्निध्य: नहीं सद्भाव बढ़े
सान्निध्य: नहीं सद्भाव बढ़े: आए गए त्योहार नहीं सद्भाव बढ़े सच तो यह है हरसू अत्याचार बढ़े। लोक लाज कुल मर्यादाएँ बहिन बहू बेटी माताएँ सीता होली ...
गुरुवार, 7 मार्च 2013
स्त्री-पुरूष
सहज सकते हो
केवल
अपना अहम्
वह (स्त्री) सहेजती है
पीड़ा और दर्द
पुरूष शब्द
तुम्हारे मस्तिष्क और
तुम्हारी सोच को
खाली कर चुका है
विपरीत इसके
स्त्री भरी रहती है हमेशा
अपनी आंखों में आँसू
क्योंकि
इकठ्ठा करना जानती है वह
भरी रहती हैं हमेशा
उसकी दोनों आँखें इसलिए तो
पलकें नम रहती हैं
और
उसके सुख
जगह नहीं मिलने पर
लौट जाते हैं खाली हाथ
पुरूष से स्त्री का
भेद सिर्फ इतना है कि
स्त्री
वह शब्द है
जब
कहा जाए
परिभाषा लिखो दुःख की
तो
मात्र एक शब्द ही पर्याप्त है
“स्त्री”।
महिला दिवस पर विशेष
आज महिला दिवस है। मेरी ओर से नारी शक्ति को हार्दिक
शुभकामनाएँ।
आज महिलाओं के विषय में जो तर्क दिये जाते हैं वह बेमानी
साबित हो रहे हैं। मैं केवल एक ही तर्क रखता हूँ उस पर जरा सोचिए- कि नारी को आप
किस रूप में मान्य करते हैं? नारी अभिशाप है अथवा वरदान? मत भिन्न हो सकते हैं पर निःसंदेह
जो भी जीव अथवा निर्जीव किसी को कुछ देता है तो वह वरदान ही हो सकता है अभिशाप
नहीं। नारी ने ब्रह्माण्ड की अमूल्य धरोहर मानव शक्ति को जन्म दिया है। नारी जब
हमें कुछ दे रही है तब वह वरदान ही है। ऐसे पुरूष जिनकी सोच का दायरा नारी के
प्रति सीमित है उनके लिए मैं कहना चाहता हूँ कि वह यदि सीता जैसी पत्नी चाहते हैं
तो अपने आचरण में राम जैसे संस्कार भी लाएँ।
अंत में अपनी बात को विराम देने से पहले यह कहना चाहता हूँ कि महिलाओं का
सम्मान मात्र महिला दिवस और कागजों तक ही न रहे। अपितु नारी के सम्मान को अपने
जीवन में आत्मसात करके संकल्प लें कि केवल महिला दिवस के दिन ही नहीं बल्कि
प्रत्येक दिन नारी का सम्मान हो। मैं दावा करता हूँ कि आप प्रयास तो कीजिए आपकी
भावनाएँ स्वतः ही बदल जाएंगी।
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