कवि श्री गाफिल स्वामी जी को "निरूपमा प्रकाशन" से प्रकाशित उनके
काव्य संग्रह
"जय हो भ्रष्टाचार की"
प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई।
पुस्तक समीक्षा
वर्तमान परिवेश में
"भ्रष्टाचार" एक ऐसा मुद्दा है जो ढलान पर अनियंत्रित वाहन की तरह गति
पकड चुका है। विषय विशेष पर इतना अधिक लिखना विरले लोग ही कर पाते हैं। इस पुस्तक
के प्रकाशन से कवि ने सदियों तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। किसी कविता में कुछ
अलग हटकर लिखा हो तो उस विशेष कविता की चर्चा अनिवार्य हो जाती है। लेकिन इस
पुस्तक में प्रत्येक कविता विशेष होने के कारण किसी खण्डकाव्य का अर्क प्रतीत होती
है। भ्रष्टाचार पर अंकुश असंभव सा लगता है। लेकिन मैं यह बात दावे से कह सकता हूँ
कि कोई भी भ्रष्टाचारी इस पुस्तक को पढने के बाद अपने जीवन में सुधार की संभावनाएं
अवश्य ही तलाशेगा।
वरिष्ठ कवि श्री गाफिल स्वामी जी एक
अच्छी सोच और सार्थक प्रयास के साथ निर्विवाद रूप से बधाई के पात्र हैं। उनकी यह
पुस्तक निःसंदेह पठनीय एवं संकलन योग्य है।
कवि सुधीर गुप्ता "चक्र"
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