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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

सदा नेह बरसाया माँ ने

अपना दूध पिलाकर मेरा, तन-मन पुष्ट बनाया माँ ने।
जब भी मैं रोया चिल्लाया, छाती से चिपकाया माँ ने॥

घुटुअन चला गिरा पुचकारा, चोट लगी सहलाया माँ ने।
धीरे-धीरे बडा‌ हुआ मैं, उँगली पकड चलाया माँ ने॥

भूखी रही बाद में खाया, पहले मुझे खिलाया माँ ने।
गीले में सोई महतारी, सूखे मुझे सुलाया माँ ने॥

नजर न लगे किसी की मुझको, टीका रोज लगाया माँ ने।
घर से बाहर जब भी निकला, सिर पर हाथ फिराया माँ ने।

पढ‌ने गया पाठशाला में, ले-ले कर्ज पढा‌या माँ ने।
पास हुआ तो खुशी हुई माँ, फेल हुआ समझाया माँ ने॥

कभी झूठ बोला तो मारा, केवल सच सिखलाया माँ ने।
शादी योग्य हुआ की शादी, इंसा मुझे बनाया माँ ने ॥

सास-बहू में तू-तू मैं-मैं हुई, हमेशा छुपाया माँ ने।
गाली खायी अश्क बहाए, फिर भी नहीं बताया माँ ने।

मैं तो कर्ज चुका ना पाया, मेरा कर्ज चुकाया माँ ने।
मरते दम तक दी आशीषें माँ ने, सदा नेह बरसाया माँ ने॥

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