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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

तुम सृजन करो

तुम सृजन करो मैं हरि‍त प्रीत शृंगार सजाऊँगा।
वसुन्‍धरा को धानी चूनर भी पहनाऊँगा।
देखे होंगे स्‍वप्‍न यथार्थ में जीने का है समय,
ग्रामोत्‍थान और हरि‍त क्रांति‍ की अलख जगाऊँगा।।

बढ़ते क़दम शहर की ओर रोकूँगा जड़वत हो।
ग्राम्‍य वि‍कास का युवकों में संज्ञान अनवरत हो।
नई नई तकनीक उन्‍न्‍त कृषि‍ कक्षायें हों।
साधन संसाधन जाने की कार्यशालायें हों।
कहाँ कसर है ग्राम्‍य चेतना शि‍वि‍र लगाऊँगा।।

गोबर गेस, सौर ऊर्जा का हो समुचि‍त उपयोग।
साझा चूल्‍हा, साझा खेती पर हों नए प्रयोग।
पर्यावरण सुरक्षा, सघन वन, पशुधन संवर्द्धन हो।
पंचायत के नि‍र्णय मान्‍य हों, न कोई भूखा जन हो।
श्रम का हो सम्‍मान मैं ऐसी हवा चलाऊँगा।।

कृषि‍प्रधान है देश कृषि‍ पर ध्‍यान रहे हरदम।
वर्षा पर नों नि‍र्भर जल संग्रहण हो न कम।
उन्‍नत बीज खाद मि‍ले बाजार यहीं वि‍कसि‍त हों।
चौपाल सजें आधुनि‍क कृषि‍ पर चर्चायें भी नि‍त हों।
अभि‍नव ग्राम बनें मैं ऐसी जुगत लगाऊँगा।।

तुम सृजन करों------

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