शुक्रवार, 24 जुलाई 2015
सान्निध्य: आईने से क्या कोई झूठ बोल सकता है (ग़ज़ल)
सान्निध्य: आईने से क्या कोई झूठ बोल सकता है (ग़ज़ल): आईने से क्या, कोई झूठ बोल सकता है। बिना चाबी क्या, कोई कुफ़्ल 1 खोल सकता है। सच्चाई छिपती नहीं सात परदों में भी, तराजू में क्...
शुक्रवार, 17 जुलाई 2015
सान्निध्य: ग़ज़ल
सान्निध्य: ग़ज़ल: रह जाते हैं ज़िंदगी में, अनसुलझे कुछ सवाल अकसर। रह जाते हैं तिश्नगी 1 में, अनबुझे कुछ सवाल अकसर। मुसव्विर 2 भी कभी-कभी मुत्मईन 3 न...
गुरुवार, 16 जुलाई 2015
सान्निध्य: डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' पर कुण्डलिया छंद
सान्निध्य: डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' पर कुण्डलिया छंद: डा0 रघुनाथ मिश्र *सहज* विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के अधिवेशन में सम्मान लेते हुए 1 सागर सा व्यक्तित्व है, जोश अपार अथाह। जन...
सोमवार, 13 जुलाई 2015
सान्निध्य: निश्चय ही सिरमौर, बनेगी अपनी हिन्दी (कुण्डलिया ...
सान्निध्य: निश्चय ही सिरमौर, बनेगी अपनी हिन्दी (कुण्डलिया ...: 1- हिन्दी की बस बात ही, करें न अब हम लोग। मिलजुल कर अब साथ ही, देना है सहयोग। देना है सहयोग, राजभाषा है अपनी। नहीं बनी अब तलक, राष्ट...
शनिवार, 11 जुलाई 2015
सान्निध्य: राम से नेह लगाया कर
सान्निध्य: राम से नेह लगाया कर: राम नाम संकीर्तन कर तू, तर जाएगा प्राणी। राम से नेह लगाया कर तू , तर जाएगा प्राणी।। भवसागर से भरा हलाहल, क्या बिसात है तेरी। बिना पि...
सान्निध्य: मेरे घर आँगन में गौरैया नित आओ
सान्निध्य: मेरे घर आँगन में गौरैया नित आओ: मेरे घर आँगन में, गौरैया नित आओ।। ढेर परिंडे बाँधे, कई नीड़ बनवाये। विकसित किया सरोवर, कई पेड़ लगवाये। खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कान...
सान्निध्य: अकसर लोग कहा करते हैं
सान्निध्य: अकसर लोग कहा करते हैं: अकसर लोग कहा करते हैं लोक लुभावन मिसरे धूप हवा में धूप बड़ी। कुछ पंछी स्वच्छंद विचरते कुछ पिँजरों में कैदी चहका क...
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