महीनों हो गए
पडोस का मकान खाली है
कोई
रह भी रहा हो तो
पता नहीं
बंद दरवाजे
कहाँ बताते हैं
बगल में कौन रहता है
वे तो मूक हैं
इस तरह
कंक्रीट वाले जंगलों के बीच
महानगरों में रहने वालों की जिंदगी
दस-बाई-दस के कमरों से लेकर
चार-बाई छः की
कार तक ही सीमित है
जो
भागती रहती है
कोलतार की गर्म सडकों पर
या
बीतती है बंद कमरों में
इनके
दिन की शुरूआत होती है
ताला बंद करने से
और
खत्म होती है
देर रात को
ताला खोलने तक
बंद दरवाजे के भीतर
दम-घोंटू वातावरण
ताला खोलते ही
भयानक अंदाज में अहसास कराता है
अपने आपको
कैद से मुक्त कराने का
और
करता है
जानलेवा प्रयास
ताकि
कल तुम ऐसा न करो
फिर भी नहीं मानते
महानगरों में बसने वाले लोग
क्योंकि
सीमित हो चुका है उनका दायरा
और
वे इस दिनचर्या रूपी
नशे के आदी हो चुके हैं।
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