ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद। यदि आप कवि या लेखक हैं तो आईए हम आपको मंच प्रदान करते हैं आप “काव्याकाश” से जुड़‌कर अपनी कविताएं, लेख, व्यंग्य, कहानी आदि प्रकाशित कर सकते हैं। अथवा "अनुसरण करें" पर किल्क करके हमसे जुड़ सकते हैं। आज ही ईमेल करें- kavyakash1111@gmail.com

मंगलवार, 27 मार्च 2012

उम्मीदें क्यों ?

क्यों बिलोता हूँ कीचड़

शायद इसलिए

दूध की तरह

उफान न आए

क्यों लिखता हूँ

रेत पर अपने छंद

शायद इसलिए

कोई इतिहास बन जाए

क्यों देखता हूँ आईना

शायद इसलिए

चेहरे पर अपने

भरोसा नहीं

क्यों मौन हूँ

शायद इसलिए

वाणी चुर (चुराना) न जाए

क्यों रहता हूँ फटेहाल

सुदामा की तरह

शायद इसलिए

कृष्ण, मुझे भी अपनाएँ

क्यों है

सूरज से दोस्ती की लालसा

शायद इसलिए

रोशनी कहीं

अँधेरों में न सिमट जाए

क्यों लगाए हैं कैक्टस

शायद इसलिए

यमराज के आने का डर है

क्यों डर है रिश्तों से

शायद इसलिए

खून अपना

तुरूप की चाल न हो

यह सारी उम्मीदें क्यों

शायद इसलिए

असंभव

संभव हो जाए।

1 टिप्पणी:

  1. वाह......
    अदभुद रचना...........

    क्यों रहता हूँ फटेहाल
    सुदामा की तरह
    शायद इसलिए
    कृष्ण, मुझे भी अपनाएँ

    बहुत बढ़िया .....
    सादर.

    जवाब देंहटाएं