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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

बृज की होली

होली है बृज धाम की, दुनिया में मशहूर।

गली गली रंग रास हैं, रंग रसिया रंग हूर।।

बरसाने में रंग हैं, गोकुल में है रंग।

वृंदावन नंदगांव में, छिड़ी रंग की जंग।।

बृज में राधा श्याम के, रंगों की बरसात।

जमुना जल के रंग में, जीवन कौ रंग साथ।।

सभी सखी हैं राधिका, सभी सखा घनश्याम।

होली के रंग में रंग्यौ, पूरौ ही बृजधाम।।

श्याम रंग में तन रंग्यौ, मन राधा के रंग।

पंड़ा पी-पी मस्त हैं, भोले जी की भंग।।

पूरे ही बृजधाम में, रंग बरसे दिनरात।

गाफिल बृज के रंग की, रंग रंगीली बात।।

बृज -रज के रंग जो रंगे, बड़भागी वो लोग।

बृज-दर्शन के रंग सौं, मिट जायें सब रोग।।

सोमवार, 31 जनवरी 2011

माँ की सेवा

हमने अपनी माँ को देखा,
फिर मां में ममता को देखा।
ममता में भी मां को देखा,
बार बार बस मां को देखा।।

देखा-देखी के इस युग में,
हमने केवल मां को देखा।
माँ ने तो हमको भी देखा,
और सारे जग को भी देखा।।

जब मैं छोटा, माँ-माँ होती,
मैं रोता था माँ ना रोती।
मुझे खिला पिला कर भी माँ,
कभी-कभी भूखी भी सोती।।

आज उलट है उसका यारों,
अपनी मां अब वृद्ध हो गई।
बहू-बेटियां नाती-पोते,
घर की फौज समृद्ध हो गई।।

माँ की खटिया घर के बाहर,
या छप्पर के नीचे आई।
रोटी की तो बात अलग है,
पानी को भी देत दुहाई।।

बुढ़िया-बुढ़िया कहकर घर क्या,
सारा गांव बुलाता है।
बुढ़िया रोये या चिल्लाये,
बेटा भी कतराता है।।

बुढ़िया होकर भी माँ-माँ है,
फिर भी आंसू पी रह जाती।
घर में अगर कोई झगड़ा हो,
पास बुला सबको समझाती।।

माँ की हालत ऐसी भैया,
मेरी हो या तेरी मैया।
माँ का दुःख बस मां ही जाने,
या फिर जाने सृष्टि रचैया।।

माँ की सेवा परम धर्म है,
ये हैं संतों की बानी।
जीते जी कर माँ की सेवा,
माँ मरने के बाद न आनी।।

जो माँ के चरणों में अर्पण,
तन-मन धन कर जायेगा।
जीवन भर सुख पायेगा वो,
और स्वर्ग में जायेगा।।

माँ

कितना छोटा शब्द माँ, लेकिन बड़ा महान।
माँ के आगे लघु लगे, “गाफिल” सकल जहान।।

माँ से बड़ा न देवता, इस दुनिया में कोय।
माँ के आँचल में सभी, देव रहे हैं सोय।।

केवल जननी जानती, जननी माँ का दर्द।
जानेगा कैसे भला, माँ की पीड़ा मर्द।।

जिस घर ममता मात की, जिस घर मात दुलार।
“गाफिल” उस घर में बहे, जीवन की रस धार।।

माँ के ऋण से ना कभी, उऋण होगा पूत।
माँ की सेवा जो करे, सच्चा वही सपूत।।

नाती बेटा देखकर, फिर पन्ती की चाह।
ऐसी माँ की आत्मा, ऐसी माँ की राह।।

दुख सहकर भी माँ सदा, हंसे और मुस्काय।
मर कर भी माँ स्वर्ग से, सुख आशीष लुटाय।।

जब तक माँ जीवित रहे, सेवा करें न लोग।
मर जाने के बाद में रोज, लगावें भोग।।

“गाफिल” सुख गर चाहिये, निशदिन माँ को पूज।
तब होगी संसार में, तेरी जय औ’ बूझ।।

माँ के चरणों में सभी, तीरथ चारों धाम।
“गाफिल” माँ के चरण गहि, पूरन हों सब काम।।

जो माँ की सेवा करे, वही स्वर्ग में जाय।
बरना माँ के बाद में, जीवन भर पछिताय।।

पी पी के सुरा

पी पी के सुरा जिन्दगी हमने बिगार ली।
कोई बता दे जिसने पीकर संवार ली।।

पीने को तरसते हैं दो घूँट गर मिले,
आई जो सामने तो बोतल डकार ली।।

पहिचान बढ़ गई है पी पी के इस कदर,
घर में खतम हो गई जाकर उधार ली।।

पीने का किसी को भी आया न सलीका,
पीने को समझते हैं कि जंग मार ली।।

दिल टोकता है हमको पीना नहीं कभी,
पी पी के हुये “गाफिल” तो बार बार ली।।

चाँद तक पहुँचे

चाँद तक पहुंचे हमारे पांव यारो।
पर अंधेरों में अभी भी गांव यारो।।

दिन सुनहरा रात जिनकी चाँदनी है,
वे हमें दिखला रहे हैं छांव यारो।।

रंग गिरगिट की तरह जो नित बदलते,
वो भला क्या लायेंगे बदलाव यारो।।

क्या भरोसा हम करें उनकी जुबां का,
चल रहे हैं नित नये जो दाव यारों।।

है निराली दास्तां अपने वतन की,
खुद डुबो देते हैं नाविक नाव यारो।।

बहुत कुछ है...........

बहुत कुछ है वतन में, भर पेट खाने के लिये।
लोग फिर भी जा रहे, बाहर कमाने के लिये।।

कौन कहता है कमी है तेल की इस देश में,
मुफ्त में मिल जायेगा जलने जलाने के लिये।।

महल हैं गिरवी रखे हैं सोचना तू छोड़ दे,
झोंपड़ा अच्छा है तेरा सर छुपाने के लिये।।

मरने वाले मर रहे विस्फोट से हर मुल्क में,
फिर भी करार हो रहे हैं बम बनाने के लिये।।

है नहीं कोई किसी का सोच ले “गाफिल” जरा,
तैयार सब हैं सब को उल्लू बनाने के लिये।।

फर्क नहीं पड़ता है

इसकी हो सरकार, फर्क नहीं पड़ता है।
या उसकी सरकार, फर्क नहीं पड़ता है।।

बिना दाम के काम नहीं कुछ भी होता,
पहले दे जा यार, फर्क नहीं पड़ता है।।

अधिकारी आये या मंत्री डर कैसा,
सब पैसे के यार, फर्क नहीं पड़ता है।।

सुनता नहीं दीन की कोई दुनिया में,
चाहे मर या मार, फर्क नहीं पड़ता है।।

सभी भ्रष्ट हैं भ्रष्टाचार की जै बोलो,
सच की मिट्टी ख्वार, फर्क नहीं पड़ता है।।

लेने वाले मौज ले रहे तू भी ले,
मत कर सोच विचार, फर्क नहीं पड़ता है।।

झूँठों की दुनिया में शामिल हो “गाफिल” ,
वरना मर जा यार, फर्क नहीं पड़ता है।।