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सोमवार, 31 जनवरी 2011

माँ

कितना छोटा शब्द माँ, लेकिन बड़ा महान।
माँ के आगे लघु लगे, “गाफिल” सकल जहान।।

माँ से बड़ा न देवता, इस दुनिया में कोय।
माँ के आँचल में सभी, देव रहे हैं सोय।।

केवल जननी जानती, जननी माँ का दर्द।
जानेगा कैसे भला, माँ की पीड़ा मर्द।।

जिस घर ममता मात की, जिस घर मात दुलार।
“गाफिल” उस घर में बहे, जीवन की रस धार।।

माँ के ऋण से ना कभी, उऋण होगा पूत।
माँ की सेवा जो करे, सच्चा वही सपूत।।

नाती बेटा देखकर, फिर पन्ती की चाह।
ऐसी माँ की आत्मा, ऐसी माँ की राह।।

दुख सहकर भी माँ सदा, हंसे और मुस्काय।
मर कर भी माँ स्वर्ग से, सुख आशीष लुटाय।।

जब तक माँ जीवित रहे, सेवा करें न लोग।
मर जाने के बाद में रोज, लगावें भोग।।

“गाफिल” सुख गर चाहिये, निशदिन माँ को पूज।
तब होगी संसार में, तेरी जय औ’ बूझ।।

माँ के चरणों में सभी, तीरथ चारों धाम।
“गाफिल” माँ के चरण गहि, पूरन हों सब काम।।

जो माँ की सेवा करे, वही स्वर्ग में जाय।
बरना माँ के बाद में, जीवन भर पछिताय।।

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