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सोमवार, 31 जनवरी 2011

चाँद तक पहुँचे

चाँद तक पहुंचे हमारे पांव यारो।
पर अंधेरों में अभी भी गांव यारो।।

दिन सुनहरा रात जिनकी चाँदनी है,
वे हमें दिखला रहे हैं छांव यारो।।

रंग गिरगिट की तरह जो नित बदलते,
वो भला क्या लायेंगे बदलाव यारो।।

क्या भरोसा हम करें उनकी जुबां का,
चल रहे हैं नित नये जो दाव यारों।।

है निराली दास्तां अपने वतन की,
खुद डुबो देते हैं नाविक नाव यारो।।

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