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सोमवार, 31 जनवरी 2011

माँ की सेवा

हमने अपनी माँ को देखा,
फिर मां में ममता को देखा।
ममता में भी मां को देखा,
बार बार बस मां को देखा।।

देखा-देखी के इस युग में,
हमने केवल मां को देखा।
माँ ने तो हमको भी देखा,
और सारे जग को भी देखा।।

जब मैं छोटा, माँ-माँ होती,
मैं रोता था माँ ना रोती।
मुझे खिला पिला कर भी माँ,
कभी-कभी भूखी भी सोती।।

आज उलट है उसका यारों,
अपनी मां अब वृद्ध हो गई।
बहू-बेटियां नाती-पोते,
घर की फौज समृद्ध हो गई।।

माँ की खटिया घर के बाहर,
या छप्पर के नीचे आई।
रोटी की तो बात अलग है,
पानी को भी देत दुहाई।।

बुढ़िया-बुढ़िया कहकर घर क्या,
सारा गांव बुलाता है।
बुढ़िया रोये या चिल्लाये,
बेटा भी कतराता है।।

बुढ़िया होकर भी माँ-माँ है,
फिर भी आंसू पी रह जाती।
घर में अगर कोई झगड़ा हो,
पास बुला सबको समझाती।।

माँ की हालत ऐसी भैया,
मेरी हो या तेरी मैया।
माँ का दुःख बस मां ही जाने,
या फिर जाने सृष्टि रचैया।।

माँ की सेवा परम धर्म है,
ये हैं संतों की बानी।
जीते जी कर माँ की सेवा,
माँ मरने के बाद न आनी।।

जो माँ के चरणों में अर्पण,
तन-मन धन कर जायेगा।
जीवन भर सुख पायेगा वो,
और स्वर्ग में जायेगा।।

माँ

कितना छोटा शब्द माँ, लेकिन बड़ा महान।
माँ के आगे लघु लगे, “गाफिल” सकल जहान।।

माँ से बड़ा न देवता, इस दुनिया में कोय।
माँ के आँचल में सभी, देव रहे हैं सोय।।

केवल जननी जानती, जननी माँ का दर्द।
जानेगा कैसे भला, माँ की पीड़ा मर्द।।

जिस घर ममता मात की, जिस घर मात दुलार।
“गाफिल” उस घर में बहे, जीवन की रस धार।।

माँ के ऋण से ना कभी, उऋण होगा पूत।
माँ की सेवा जो करे, सच्चा वही सपूत।।

नाती बेटा देखकर, फिर पन्ती की चाह।
ऐसी माँ की आत्मा, ऐसी माँ की राह।।

दुख सहकर भी माँ सदा, हंसे और मुस्काय।
मर कर भी माँ स्वर्ग से, सुख आशीष लुटाय।।

जब तक माँ जीवित रहे, सेवा करें न लोग।
मर जाने के बाद में रोज, लगावें भोग।।

“गाफिल” सुख गर चाहिये, निशदिन माँ को पूज।
तब होगी संसार में, तेरी जय औ’ बूझ।।

माँ के चरणों में सभी, तीरथ चारों धाम।
“गाफिल” माँ के चरण गहि, पूरन हों सब काम।।

जो माँ की सेवा करे, वही स्वर्ग में जाय।
बरना माँ के बाद में, जीवन भर पछिताय।।

पी पी के सुरा

पी पी के सुरा जिन्दगी हमने बिगार ली।
कोई बता दे जिसने पीकर संवार ली।।

पीने को तरसते हैं दो घूँट गर मिले,
आई जो सामने तो बोतल डकार ली।।

पहिचान बढ़ गई है पी पी के इस कदर,
घर में खतम हो गई जाकर उधार ली।।

पीने का किसी को भी आया न सलीका,
पीने को समझते हैं कि जंग मार ली।।

दिल टोकता है हमको पीना नहीं कभी,
पी पी के हुये “गाफिल” तो बार बार ली।।

चाँद तक पहुँचे

चाँद तक पहुंचे हमारे पांव यारो।
पर अंधेरों में अभी भी गांव यारो।।

दिन सुनहरा रात जिनकी चाँदनी है,
वे हमें दिखला रहे हैं छांव यारो।।

रंग गिरगिट की तरह जो नित बदलते,
वो भला क्या लायेंगे बदलाव यारो।।

क्या भरोसा हम करें उनकी जुबां का,
चल रहे हैं नित नये जो दाव यारों।।

है निराली दास्तां अपने वतन की,
खुद डुबो देते हैं नाविक नाव यारो।।

बहुत कुछ है...........

बहुत कुछ है वतन में, भर पेट खाने के लिये।
लोग फिर भी जा रहे, बाहर कमाने के लिये।।

कौन कहता है कमी है तेल की इस देश में,
मुफ्त में मिल जायेगा जलने जलाने के लिये।।

महल हैं गिरवी रखे हैं सोचना तू छोड़ दे,
झोंपड़ा अच्छा है तेरा सर छुपाने के लिये।।

मरने वाले मर रहे विस्फोट से हर मुल्क में,
फिर भी करार हो रहे हैं बम बनाने के लिये।।

है नहीं कोई किसी का सोच ले “गाफिल” जरा,
तैयार सब हैं सब को उल्लू बनाने के लिये।।

फर्क नहीं पड़ता है

इसकी हो सरकार, फर्क नहीं पड़ता है।
या उसकी सरकार, फर्क नहीं पड़ता है।।

बिना दाम के काम नहीं कुछ भी होता,
पहले दे जा यार, फर्क नहीं पड़ता है।।

अधिकारी आये या मंत्री डर कैसा,
सब पैसे के यार, फर्क नहीं पड़ता है।।

सुनता नहीं दीन की कोई दुनिया में,
चाहे मर या मार, फर्क नहीं पड़ता है।।

सभी भ्रष्ट हैं भ्रष्टाचार की जै बोलो,
सच की मिट्टी ख्वार, फर्क नहीं पड़ता है।।

लेने वाले मौज ले रहे तू भी ले,
मत कर सोच विचार, फर्क नहीं पड़ता है।।

झूँठों की दुनिया में शामिल हो “गाफिल” ,
वरना मर जा यार, फर्क नहीं पड़ता है।।

कलयुगी दोहे

दौर कलयुगी चल रहा, बदले सब हालात।
दुनिया झूठी हो गई, झूठी सच की बात।।

सच्चा सुख गायब हुआ, हावी झूठी शान।
चमद-दमक में खो गई, जीवन की पहिचान।।

सच्चाई अनमोल है, ये कहने की बात।
झूठ कीमती हो गया, झूठ चले दिन-रात।।

“गाफिल” सुख की खोज में, हुई दुःखों की खोज।
जीवन चिथड़े हो रहे, गोली बम से रोज।।

भौतिकवादी हो गया, “गाफिल” हर इंसान।
सब मस्ती में मस्त हैं, धन का है सम्मान।।

नैतिकता कुम्हला गई, हावी है उत्पात।
बेटे और बहून से, दुःखी पिता अरू मात।।

कलियुग की महिमा अजब, अजब कलियुगी खेल।
भाई-भाई में नहीं, रहा प्रेम अरू मेल।।

अपने ही देने लगे, अब अपनों को कष्ट।
आज सभ्यता देश की, हुई पतित - पथ भ्रष्ट।।

बहू डांटती सास को, करती रोज कलेष।
कलयुग की हर नारि के, मन माही छल-द्वेष।।

स्वारथ में हर आदमी, अंधा अरू हैवान।
भाई - भाई का कतल, कर देता इंसान ।।

राम - श्याम के देश में, “गाफिल” भ्रष्ट नरेश।
भ्रष्टों की अब मौज है, सच्चे दुःखी हमेश।।

बैठ सुरग में देव सब, सोचें बस ये बात।
“गाफिल” धरती पर मचा, कोहराम उत्पात।।

दुष्टों - भ्रष्टों से सभी, देव दुःखी लाचार।
इसीलिये लेते नहीं, कलयुग में अवतार।।

बम्ब कहीं गोली कहीं, लुटे कहीं पर लाज।
राम भरोसे जिन्दगी, जीते हैं सब आज।।

सीता - सीता ना रही, राम रहे ना राम।
बुरे काम से ना डरें, अब के राधाश्याम।।

रहा नहीं अब शुद्ध कुछ, इस दुनिया में यार।
नम्बर देश के हो गये, सारे कारोबार।।

जीवन यौवन चार दिन, नश्वर ये संसार।
इसीलिये सब ले रहे, निशदिन मौज बहार।।

जायेगा ना साथ कुछ, सभी जानते लोग।
फिर भी धन की चाह का, लगा सभी को रोग।।

मरना सब को एक दिन, सब जानें ये बात।
फिर भी खोटे काम में, सभी लिप्त दिन-रात।।

“गाफिल” सारे लोग अब, मद माया में चूर।
व्यस्त मस्त हैं रात-दिन, हुये प्रभू से दूर।।

झूठ बोलने का बढ़ा, फैशन और रिवाज।
मोबाइल ने कर दिया, सबको झूठा आज।।

गांवन में भी सर चढ़ी, फैशन सौ परसेन्ट।
बूढ़े क्या अब लड़कियां, पहिनें टीशर्ट-पेन्ट।।

कलयुग का गुरू मंत्र है, दम दारू अरू दाम।
इनके बिना न होयेगा, कोई पूरन काम।।

देख - देख हैरान है, दुनिया को भगवान।
भले लोग सब हैं दुःखी, खुश हैं बेईमान।।

गंगा की पावन धारा

गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे।
हर गीत निखर जाये मेरा, तुम आओ जब मेरे द्वारे॥
            मैं पलक पावणे बैठा था,   
            मेरा अपना भी कोई आयेगा।
            ऐसा ही मैं भी गीत कोई लिखूँ,
            पत्थर मूरत हो जायेगा॥
यह गीत सिंधु सा हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
            तू तुलसी की रामायण,
           
मैं प्रेमचंद की रंगशाला।
            तू गा‌लिब की गजल बनें,
           
बच्चन की मैं भी मधुशाला॥
गीतों को सरगम मिल जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
            तुम वृहद कोष हो शब्दों का,
           
मैं एक शब्द में हो गया।
            अब तन मेरा मथुरा का यौवन,
           
मन वृन्दावन हो गया॥
हर गीत ही गीता हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥ 

मन बौरा गया

पा लिया जब से तुम्हें, मन मेरा बौरा गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            दे मुझे सजनी निमंत्रण,
           
स्वप्न की बेला में आयी।
            मिल गये उपहार अनुपम,
           
प्रीत ने डोली सजायी॥
पा लिया उपहार जब से मन में, कुछ-कुछ हो गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            है अधर मुस्कान लाली,
           
नयन में मधुमास छाया।
            ली कसम जब से तुम्हारी,
           
दीप मन का जगमगाया॥
ले रहा अंगड़ाई मौसम, याद कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            बज उठे नुपूर कहीं पर,
           
दूर कोई गा रहा है।
            रंग जीवन के संजोये,      
            पास कोई आ रहा है॥
गीत अधरों पर मिलन का, आज कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥

हंसीदार दोहे

बुढि‌या साठ साल की, करती सौ श्रंगार।
निकल गयी अब पैठ में बूढे‌ खायें पछार॥

जोड़-तोड़ कुछ भी करो बढ़ते जाओ यार।
राजनीति में जायज है, गठबंधन सरकार॥

रोज सिनेमा जाईये, साली गले लगाये।
पत्नी पीछे अब चले, दो आंसू टपकाये॥

दफ्तर इन्कम टेक्स के, अध्यापक अब जाये।
कुर्ता पज्जमा फाड़कर, हाल बेहाल बनाये।।

बोतल पीकर झूमते, अब घर कू हम जाये।
उतर जायेगा सब नशा, बेलन देय सरकाये॥

पत्नी बेलन मारकर, करे कमर पर चोट।
थाने में कर देखिये, नाहिं कोई रपोट॥

शायर गजल सुनायके, सब कू करता बोर।
हमको देखो मिल गया, वंशमोर घनघोर॥

सांत्वना

वह
शादी के बाद
मुझे अपना
अच्छा दोस्त मानने लगा
सभी ने बधाई दी
मैंने तो केवल
सांत्वना दी थी। 

नेता चुनाव

चेयरमैन के चुनाव में
दो पार्टियां खड़ी हुईं
एक थी धनुष-बाण
दूसरी थी कृपाण
एक नेताजी
धनुष बाण चढ़ाए
दूसरे नेताजी के सम्मुख गुनगुनाए
मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाए
बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए।

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

सुखद हवा का झोंका

पिता की लाचारी
माँ की बीमारी
लकवाग्रस्त छोटी बहिन प्यारी
बेरोजगार बैठा छोटा भाई
और
घर की ढेरों जिम्मेदारी
ढेरों मानसिक तनाव
ऐसे में भी
मेरी ओर तुम्हारा (पत्नी का) झुकाव
तूफानी आंधी में
सुखद हवा का झोंका है।

तुम्हारे लिए

टकराया था
सारे जमाने से मैं
तुम्हारे लिए।

सच

तुम कथा हो
मैं तो लघुकथा हूँ
यही सच है।

झूठ

झूठ न बोलो
थोडा‌ सा मुँह खोलो
सच तो बोलो।

तोड़ दिया है

तोड़ दिया है
चूर-चूर करके
तुमने मुझे।

सच या झूठ

सच या झूठ
सही-सही बताओ
न कतराओ।

कागज वाली नाव

सहेजती है
कागज वाली नाव
बचपन को।

पत्नी और पाकिस्तान

एक दिन मेरी भाग्यविधाता अर्थात मेरी एकमात्र श्रीमती जी सुबह-सुबह छ: बजे टी० वी० खोलकर पाकिस्तान टी० वी० चैनल का प्रोग्राम देखने लगी। मुझे लगा कि श्रीमती जी पाकिस्तान से कुछ ज्यादा ही प्रभावित हैं। इसलिए पाकिस्तान टी० वी० का प्रोग्राम देख रही है। ऐसा सोचकर पत्नी को टी० वी० देखता छोड़कर मैं प्रतिदिन की भांति अपने कार्य पर चला गया।सांयकाल पाँच बजे दिनभर शिकार की खोज में भटके हुए थके शिकारी सा चेहरा और थकान लिए मैं घर पहुँचा तो देखा, जीर्ण-शीर्ण द्वार पर किसी दूसरी चाबी से न खुलने वाला, आठ लीवर का हरीसन ताला लटक कर मेरी दयनीय स्थिति पर हँसता हुआ मजे से झूल रहा है और बन्द ताले में चलता टी० वी० मारूति उद्योग के निरन्तर बढ़ते लाभ की तरह, विद्युत विभाग को मेरी जेब से मारूति कार के पिकअप की तरह गति प्रदान कर रहा है। मैंने अनुमान लगाया कि टी० वी० भूलवश सुबह से ही अखण्ड रामायण के पाठ की तरह बिना रूके चल रहा है। क्योंकि पाकिस्तान टी० वी० का प्रोग्राम भला घंटों कोई क्यों देखेगा ?श्रीमती जी बस अब आने ही वाली हैं ऐसा सोच-सोचकर समय ठीक उसी तरह बढ़ता रहा जैसे रेलवे स्टेशन पर विलम्ब से आने वाली रेलगाड़ी का समय द्रौपदी के चीर सा बढ़ता चला जाता है। अर्जुन के लक्ष्य चिड़िया की आँख की तरह ताले को अपना लक्ष्य बनाए हुए मुझे पूरे-पूरे दो घंटे हो चुके थे। अपने भाग्य को पिंजरे में बन्द चिड़िया की तरह कोसता ताला और राहू-केतू से घिरे जातक की तरह मैं, दोनों ही एक दूसरे को चोर दृष्टि से घंटो घूरते रहे। अंततः पत्नी रूपी मेरी गाड़ी के आने का अनाउन्समेन्ट पड़ोसी के हकलाते बच्चे, पप्पू द्वारा किया गया। अंकल जी, अंकल जी आंटी जी आने वाली हैं, सड़क के मोड़ तक आ चुकी हैं। इतना सुनते ही मैंने कड़कड़ाती सर्दी के मौसम में भी जेठ माह की तपती दोपहरी में मिले शीतल जल सा सुखद अनुभव किया। किन्तु अनाउन्समेन्ट होने के एक घंटे बाद तक भी जब श्रीमती जी नहीं आईं तो मुझे लगा कि मेरे भाग्य ने साढ़ेसाती से प्रभावित शनि ग्रह के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है।तभी पड़ोसी का लड़का पप्पू मुझे बाहर देखकर बोला, अरे अंकल लगता है आंटी जी अभी तक नहीं आई हैं। मैं देखकर आता हूँ, ऐसा कहकर उसने मेरी दुखती नस पर हाथ रखा तो मैंने कहा, बेटा, विलम्ब से आने वाली रेलगाड़ी का समय कभी निर्धारित नहीं होता है। पाँच मिनिट बाद पप्पू ने टॉफी के लालच में मेरा दूत बनते हुए गुप्त सूचना दी कि आंटी जी चौराहे पर मिसेज शर्मा से बात कर रही हैं। मैं समझ गया कि मिसेज शर्मा ने मेरी गाड़ी की चेन पुलिंग कर दी है। अब मैं खुद को सेना द्वारा किये गए अपदस्थ राष्ट्रपति सा लाचार समझने लगा। क्योंकि मुझे अब डर लगने लगा था कि कहीं फिर से कोई अन्य महिला पुनः मेरी रेलगाड़ी की चेन पुलिंग न कर दे। रात्रि के आठ बजकर बीस मिनिट और बत्तीस सेकेन्ड पर घनघोर अंधेरे में बिना नाल लगे घोड़े के टापों सी आवाज अर्थात पत्नी के पदचापों का स्वर सुनाई पड़ा। पत्नी को आते देख मेरा साढ़ेसाती शनि तुरन्त उतर गया और मेरे हृदय में मन्नत मांगने पर प्रथम पुत्र प्राप्त होने सा सुखद अनुभव हुआ। लेकिन पड़ोसी के पप्पू ने पुनः गाड़ी प्लेटफॉर्म पर आने से ठीक पहले ही आउटर पर चेन पुलिंग कर दी और पूछने लगा कि आंटी जी आप कहां गईं थीं। पप्पू ने मात्र कहाँ शब्द का ही स्विच दबाया था और बस श्रीमती जी द्वारा न रूकने वाले डबल हेड का टेप रिकॉर्ड चालू हो गया। बेटा, मैं फिल्म देखने गई थी, बड़ी अच्छी फिल्म थी कहते हुए श्रीमती जी ने बिना रूके विज्ञापन सहित पूरी फिल्म की कथा सुना दी। हम पुनः गाड़ी के प्लेटफॉर्म पर आने की प्रतीक्षा करते रहे। नौ बजकर चालीस मिनिट पाँच सेकेण्ड पर पत्नी ने ताला खोलकर घर में प्रवेश किया। हमने भी मालिक के पीछे-पीछे जा रहे नौकर सा अनुसरण करते हुए घर में प्रवेश किया तो घंटो कतार में लगने के बाद मंगला आरती पाने और देवी दर्शन करने पर मिलने वाली सफलता जैसा सुखद अनुभव किया। सर्वप्रथम हमने दयाल बाग में अनवरत चलने वाले निर्माण कार्य की तरह पन्द्रह घंटे बीस मिनिट पाँच सेकेण्ड से बिना ब्रेक की रेलगाड़ी की तरह चल रहे पाकिस्तान टी० वी० के कार्यक्रम को बन्द करने के लिए रिमोट कंट्रोल उठाया तो अमेरिका की तरह वीटो पावर का प्रयोग करते हुए पत्नी बोली कि अब यह कभी बन्द नहीं होगा, ऐसे ही चलता रहेगा। मैंने कहा, क्यों बिजली का बिल बढ़ाकर पाकिस्तान की तरह मेरी आर्थिक व्यवस्था बिगाड़ रही हो। वह बोली, चलने दो। इसमें आपका क्या जाता है ? मैंने कहा, इसमें केवल मेरा ही सब कुछ जाता है। नासमझ श्रीमती जी पुनः बोलीं, लगता है आप चालीस वर्ष की आयु में ही सठिया गए हो। मैं गारंटी लेती हूँ कि आपका कुछ नहीं होगा जो होगा पाकिस्तान का ही होगा। मैंने कहा कि तुम्हें जिस अध्यापक ने गणित विषय पढ़ाया है, लगता है वह गणित का नहीं बल्कि चित्रकला का मेधावी छात्र रहा होगा। तुम ही बताओ किस विधि से पाकिस्तान का नुकसान होगा। श्रीमती जी हमें बेवकूफ घोषित करते हुए बोलीं कि लगता है आप नकल करके पास हुए हो, क्या आप इतना भी नहीं समझते कि जब मैं पाकिस्तान टी० वी० चैनल का प्रोग्राम देखूंगी तो बिजली हमारी नहीं बल्कि पाकिस्तान की ही खर्च होगी और बिल भी उनका ही बढ़ेगा। इसलिए मैंने पाकिस्तान के विरूद्ध एकल युद्ध का संकल्प ले लिया है और जब तक पाकिस्तान कश्मीर भारत को नहीं सौंपता मैं इसी तरह टी० वी० चलाकर, पाकिस्तान का बिजली का बिल बढ़ाती रहूँगी। मुझे पत्नी का भ्रम समझते देर नहीं लगी और मैंने कहा अरे पगली टी० वी० अपना, बिजली का मीटर अपना, फिर बिजली उनकी नहीं अपनी ही खर्च होगी। घंटो तक असफल प्रयास करने के बाद भी जब यह बात श्रीमती जी की समझ में नहीं आई तो मैंने जैसे-तैसे मरीज की इच्छा के विरूद्ध उबली लोकी की सब्जी खिलाने जैसा कठोर निर्णय लेते हुए टी० वी० बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था वाले ग्राफ को नीचे गिरने से पहले ही बचा लिया और अब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भगवान ही बचाएं।



बेचारा पति

सीमा अपने पति को धमकाते हुए बोली। मान लो कि तुम अंधे हो, तुम अपाहिज हो। ऐसा सोचकर तुम कुछ नहीं बोलना और न ही कमरे से बाहर आना। समझे। तुम्हारी जरूरत का सारा सामान कमरे में ही पहुँचा दिया जाएगा। वैसे भी तुम्हें किसी चीज की क्या जरूरत है। तुम पूरे घर की निरमा से धुलाई करके सारे पर्दे और बेडशीट बदल देना, और हाँ, दोपहर का खाना बनाकर बच्चों को खिला देना। मैं बहुत व्यस्त हूँ। आज शाम को घर पर ही मेरी किटी पार्टी है। शहर की बड़ी-बड़ी हस्तियां और नामी लोगों की पत्नियां आएंगी। यह तो मेरा दुर्भाग्य ही था जो न जाने किस मनहूस घड़ी में तुम जैसा निखट्टू मेरे पल्ले पड़ गया। तुम मेरी सोसायटी में एक नौकर की भी हैसियत नहीं रखते हो। तुम्हारी एजूकेशन, हिन्दी मीडियम से केवल आठ पास, वह भी रिश्वत द्वारा बोनस अंक देकर जबरदस्ती पास किए गए हो। सूरत ऐसी की जिस के साथ तुम खड़े हो जाओ उसे कभी नजर ही न लगे। अरे, पैदा होते ही यदि चुल्लू भर पानी में डूब जाते तो मुझे कम से कम यह दिन तो न देखना पड़ता। तुम्हें स्वीकारना तो मेरी सामाजिक मजबूरी है, वरना मेरे लिये तुम किसी काम के नहीं हो। अपने पवित्र श्लोकों से मेरा आचमन कराते हुए माननीया श्रीमतीजी मेरे काल कोठरी रूपी कमरे से काले पानी की सजा सुनाकर बाहर निकल गईं। श्रीमतीजी के इस उद्बोधन को मैंने किसी उलेमा द्वारा जारी किए गए फतवे के समान मानते हुए सावधान और मौन रहने का भीष्म संकल्प ले लिया। लेकिन मेरा मौन अधिक देर तक न रह सका। मुझे नाल लगे घोड़े की टापों से भी भयंकर, पत्नी के पद्चापों का जाना-पहचाना हॉरर फिल्म जैसा स्वर सुनाई दिया। मेरा अनुमान चौबीस कैरेट खरे सोने की तरह, दो सौ प्रतिशत सही था। कुछ ही क्षणों में वह मेरे सामने चीन की दीवार सी स्थिर होकर वीटो पावर का प्रयोग करते हुए कहने लगी। मेरी सहेलियां, यदि अन्दर आ गयीं तो उन्हें सबसे पहले झुककर गाँव वालों की तरह प्रणाम नहीं, गुड ईवनींग मेडम कहना, समझे। एक बात और ध्यान रहे कि गलती से भी न बताना कि तुम मेरे निखट्टू पति हो। क्योंकि मैंने सबको यही बताया है कि मेरा पति अमिताभ बच्चन की तरह लम्बा, आमिर खान की तरह स्मार्ट, सलमान खान की तरह गोरा और अक्षय कुमार की तरह पर्सनाल्टी वाला है। तुम्हारा कारोबार विदेशों तक फैला है। इसलिए अधिकांश समय तुम हांगकांग और दुबई में ही रहते हो। मैंने वफादार कुत्ते की तरह, पूँछ की जगह सिर हिलाकर, मौन स्वीकृति प्रदान करते हुए, अपनी गर्दन ठीक उसी प्रकार झुका ली, जैसे मेरे कुल चालीस किलो के शरीर में से मात्र पाँच किलो की गर्दन पर, पचास किलो का वजन लटका दिया गया हो। ऐसा व्यवहार तो कंस ने भगवान कृष्ण के साथ भी नहीं किया था। मुझे तो लगने लगा था कि राहू, केतू और शनि ने, एक साथ आपस में परामर्श करके, मुझे चारों ओर से घेरकर, अपनी-अपनी महादशाएं लागू कर दी हैं और मुझे निहत्था पाकर आक्रमण करके ऑक्टोपस (आठ भुजाओं वाला समुद्री जीव) की तरह जकड़ लिया है। मुझसे अच्छा तो इस घर का नौकर है। सोचते-सोचते मैं बहुत दु:खी हो रहा था। अचानक फ्लाइंग स्कॉट की तरह बिना बताए श्रीमतीजी का पुन: आगमन हुआ। मेरे ऊपर गिद्ध दृष्टि डालते हुए वह बोली, यह क्या ? तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं ? मैं तो केवल तुम्हें ध्यान दिलाने आई हूँ कि कमरे के बाहर नहीं निकलना। मैंने कहा, जी मालकिन। इतना सुनते ही वह तुरन्त बोली, वेरी गुड। तुम्हें मात्र दो घंटे इसी तरह से एक्टिंग करना है। श्रीमती जी के चेहरे पर समुद्री ज्वार-भाटे की तरह उतार-चढ़ाव देखकर मैं समझ गया था कि मेरा पानी का जहाज इन समुद्री लहरों के आगे बेबस है।अचानक दीवार घड़ी ने मेरी एकाग्रता को भंग करते हुए घड़ी के पेन्डुलम द्वारा संकेत कर दिया कि अब किटी पार्टी का समय हो गया है, सतर्क हो जाओ। अगर सही एक्टिंग नहीं कर पाए तो पेन्डुलम की तरह हिला दिए जाओगे। पेन्डुलम तो थोड़ी देर में रूक भी जाता है, मगर तुम नहीं रूक पाओगे।शोरगुल की आवाज धीरे-धीरे बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में बड़े घर की शिक्षित किन्तु असभ्य महिलाओं की अपने-अपने पप्पी और कुत्तों के साथ, सोफे पर स्थापना होते ही किटी पार्टी रूपी सम्मेलन का शुभारम्भ हो चुका था। हर आधुनिक महिला के साथ एक-एक पप्पी या कुत्ता अवश्य था। मैं इस दृश्य को देखकर यह नहीं समझ पा रहा था कि यह किटी पार्टी है या कुत्ता पार्टी है। स्लीव लेस, बिना दुप्पटे वाली और डीप गले के चुस्त वस्त्रों से सुसज्जित पहनावे वाली आधुनिक महिलाएं, मर्यादा भंग करते हुए समाज में छुपे हुए भेड़ियों को अपनी और आकर्षित कर रही थीं। साथ ही शीलाजी, तेरी साड़ी, मेरी साड़ी से सफेद कैसे सर्फ के इस विज्ञापन की तरह एक-दूसरे को देखकर इतरा रही थीं। झूठा मेकअप करके शालीनता की पर्तें चढ़ा रखी थीं, जो किसी परिचित की मृत्यु होने पर रो भी नहीं सकती। क्योंकि उन्हे डर रहता है कि कहीं उनका मेकअप धुल न जाए। बूढ़ी होने पर भी हमेशा जवान दिखने की होड़ रखने वाली ये आधुनिक बालाएं (बलाएं), दो शब्द कहकर खेद व्यक्त भी नहीं कर सकतीं। क्योंकि होठों पर लिपिस्टक की जो पर्त लगी है, कहीं वह छूट न जाए। उनके इस जीवन चरित्र को देखकर मैं सोच रहा था कि क्या यही है महिला प्रधान आधुनिक समाज ? जहाँ मर्यादा, घूंघट के रूप में गायब हो चुकी हो और पत्नी को पति से प्यारा कुत्ता हो।सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए मिसेज शर्मा बोली, अरे सीमा, तेरा फर्श तो बहुत शाइनिंग मार रहा है। मिसेज शर्मा को टोकते हुये मिसेज अग्रवाल बोलीं, अरे केवल फर्श ही नहीं, चुन्नटें बनाकर पर्दे टांगने का नया ढंग और बेडशीट बिछाने की स्टाइल भी तो देखो। सीमा, मुझे तो लगता है कि तुम्हारा नौकर पहले किसी फाईव स्टार होटल में काम करता था। श्रीमतीजी ने, जैसे किसी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हों, यदि नहीं बोलने में जरा सी भी देर कर दी, तो प्रतियोगिता से बाहर हो जाएंगी, ऐसा सोचकर तुरन्त ही कहा, नहीं। इसे तो मैं अपनी ससुराल से लाई हूँ। बहुत ही सीधा है। कुत्ते की तरह दुम हिलाता है। सुनकर सभी ठहाका लगाकर हँसने लगीं। मैं अपने ऊपर होने वाली टिप्पणियों से आहत होकर, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या की तरह श्रापित होता जा रहा था। मुझे भगवान राम के रूप में किसी मानवाधिकार आयोग की मदद की जरूरत थी, जो मुझे पत्नी के बंधन से मुक्त करा सके। मैं पाकिस्तान में बन्द भारतीय सैनिक की तरह, पत्नी की कैद से मुक्त होने के असम्भव सपने देख रहा था। इस बार सपनों को छिन्न-भिन्न करते हुए मिसेज तिवारी बोलीं, अरे सीमा जरा अपना घर तो दिखा। मैं समझ गया कि अब मेरी सीताजी की तरह अग्नि परीक्षा की तैयारी है। मैंने तुरन्त अपने आपको संभाला और नौकर की भूमिका के लिए तैयार हो गया। धीरे-धीरे महिलाओं की फौज इस निहत्थे और लाचार सिपाही की ओर बढ़ने लगीं। उन्हें देखकर मेरे चेहरे पर, मृत्यु की सजा पाए अपराधी की तरह डर के हाव-भाव दिखने लगे और श्रीमतीजी की गर्दन गर्व से इस प्रकार ऊँची और सीधी थी कि जैसे डॉक्टर ने गर्दन में ट्रेक्शन लगा दिया हो। दो घंटे बाद जब सभी बालाएं उर्फ बलाएं चली गईं तो, मैंने श्रीमतीजी से ठीक उसी तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा, जैसे कोई विकासशील देश विकसित देश के आगे गिड़गिड़ाता है कि मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। मैं तुम्हारी किटी पार्टी की बची हुई खाद्य सामग्री को प्रसाद समझकर खा लूंगा। मुझे बस आपकी अनुमति चाहिए। मेरा यह सद्विचार सुनकर वह शेरनी की तरह दहाड़कर कहने लगी। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं तो चूहे मारने की दवा खाओ। श्रीमतीजी के इस अग्नि वाण से आहत होकर मुझे हास्य व्यंग्य कवि सुधीर गुप्ता “चक्र” की दो लाईनें याद आती हैं। उन्होंने सही लिखा है कि – “कलियुग की यह रीति सदा चली आई, पति सूखी रोटी को तरसे, पत्नी खाए दूध मलाई”।मेरे ऊपर अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। मैं भी क्या करता ? मेरा समर्थन तो पशु-पक्षी भी नहीं करते, मानव की तो बात ही अलग है। श्रीमतीजी से विवाह करना उनका नहीं बल्कि मेरा ही दुर्भाग्य था। मैं गाँव की सीधा-सादा इन्सान, भला शहर की लड़की से मेरा क्या मुकाबला। श्रीमतीजी एम० ए० इंग्लिश से टॉपर और मैं धक्का देकर आठ पास। शारीरिक ढाँचा ऐसा कि पड़ोसन मेरा नाम लेकर बच्चों को डराती है। उसी दिन से पड़ोसन के बच्चों को बुरे सपने आने लगे हैं और तब से आज तक उसके बच्चों ने मेरे घर की ओर नहीं झाँका। श्रीमतीजी का चेहरा ऐसा कि राष्ट्रपति भवन के मुगलगार्डन का खिलता हुआ गुलाब, जिसे देखकर जी नहीं भरता और मेरा चेहरा श्मशान घाट सा वीरान, जहाँ पहली बार भी कोई नहीं जाना चाहता। सुप्रीम कोर्ट की अपील हाई कोर्ट में नहीं की जाती, ऐसा मानते हुए, मैं सारी कमियां अपनी समझकर चुपचाप सुनता था और चुपचाप सहता था। मुझे तो लगता है कि जब राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यह लिखा था कि –“अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में है पानी”, तब उनको भी शायद पुरूषों का भविष्य ज्ञात नहीं था। अन्यथा वह हास्य व्यंग्य कवि सुधीर गुप्ता “चक्र” की इन पंक्तियों का समर्थन करते कि – “पुरूष जीवन बस तेरी यही कहानी, जेब होगी खाली और आँखों में होगा पानी”। अब मुझसे खाली जेब, आँख में पानी और तिरस्कार सहन नहीं होता। मैंने पल-पल होते तिरस्कार के कारण यह निर्णय लिया है कि मैं अब घर पर नहीं रहूँगा। इसलिए मैंने विद्योतमा द्वारा तिरस्कृत किए गए, महाकवि कालीदास की तरह, घर छोड़कर जाने का अभूतपूर्व निर्णय लेकर, तत्काल घर छोडते हुए मानवाधिकार आयोग की शरण ले ली है।

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मुख्य अतिथि का आगमन

इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में हमारे यहाँ मुख्य अतिथि का आगमन हुआ। मुख्य अतिथि अर्थात परम आदरणीय साला जी और साली जी। परम आदरणीय इसलिए कि यदि आप साला और साली का आदर नहीं करेंगे तो अपनी एक मात्र पत्नी के कोप भाजन का शिकार हो सकते हैं। मेरी भाग्यविधाता श्रीमतीजी के विशेष आग्रह पर साला और साली बच्चों सहित बुखार की भांति, बिना पूर्व सूचना के हमारे किराए के छोटे से मकान में, मकान मालिक की शर्तों में से एक कि ग्रीष्म ऋतु में पानी के अभाव के कारण अतिथि का आना सख्त मना है का उल्लघंन करते हुए भारी मात्रा में हमारे यहाँ पधारे। उन्हें देखते ही पत्नी सूरजमुखी के फूल की भांति खिली और हमने साली को देखकर क्लोजअप टूथपेस्ट के विज्ञापन की सी मुस्कान बिखेरी। साले की तरफ तो हमने ध्यान ही नहीं दिया क्योंकि हमें एक कहावत चरितार्थ होने का डर लगता है कि घर को बिगाड़ा आलों ने और जीजा को बिगाड़ा सालों ने। इसलिए आज तक हम साले को बुखार में तली चीजों से परहेज की भांति त्यागते रहे। घर में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम बच्चों की हिटलरी सेना ने छीना झपटी में टी० वी० का रिमोट तोड़ा तो मैंने टॉफी का लालच देकर उन्हें बगीचे में खेलने को कहा। दस मिनिट बाद ही मकान मालिक ने अतिथि आगमन का विरोध करके, बगीचे का आँखों देखा हाल सुनाया तो विश्वास ही नहीं हुआ। जाकर देखा तो बगीचा अशोक वाटिका की तरह उजड़ चुका था। मकान मालिक ने हमारे ऊपर वीटो लगाते हुए कहा कि यदि कुछ और क्षति हुई तो मकान खाली करना पड़ेगा। हमने जैसे-तैसे उनसे शांति समझौता किया और अन्दर पहुँचे तो देखा कि हमारे दो कमरे के मकान पर पूरी तरह से गृहमंत्रालय अर्थात ससुराल पक्ष का अवैध रूप से कब्जा हो चुका है। इधर का सामान उधर, उधर का सामान इधर। पता ही नहीं चला कौन सा ड्रांइग रूम है और कौन सा बेडरूम। सभी अपने में मगन हो गए और मेरी ओर से पुराना अखबार समझकर मुँह फेर लिया। दिन तो जैसे-तैसे बीत गया किन्तु रात बैडरूम में अवैध कब्जा होने के कारण माता का एक दिवसीय जागरण समझकर बरामदे में ही काटी। सुबह होते ही स्नानगृह की बुकिंग चालू। जब मेरा नम्बर आया तो नल जा चुका था। स्नानगृह के सभी बर्तन खाली थे। डूबने लायक चुल्लु भर पानी भी नहीं बचा था। जैसे-तैसे कड़कड़ाती सर्दी में, फ्रिज की ठंडी बोतल से मुँह धोकर काम चलाया। दिन बीतते रहे और हम प्रतिदिन श्रीमतीजी की दृष्टि में शेयर के भाव की तरह गिरते रहे। इस व्यवहार से हमें अतिथि देवो भव की कहावत पर निराशा हुई और मैं स्वयं को ही कोसने लगा। मुख्य अतिथि के आगमन को पूरा एक सप्ताह हो चुका था। नित नए व्यंजनों ने महीने का राशन एक सप्ताह में ही खर्च करके, पाकिस्तान की तरह मेरी आर्थिक व्यवस्था डगमगा दी। मैंने श्रीमतीजी के समक्ष जब इस बात पर चिन्ता व्यक्त की तो जिस प्रकार से 31 दिसम्बर आने पर वार्षिक केलेन्डर से मोहभंग हो जाता है, उसी प्रकार मेरे साथ भी 31 दिसम्बर का सा व्यवहार होने लगा।नौकर भी मालिक के घर में पराया नहीं कहलाता और में अपने ही घर में प्रवासी हो गया। मुझे अपना अस्तित्व विलुप्त सा लगने लगा। कारण श्रीमतीजी द्वारा ससुराल पक्ष का पूरा ध्यान और अपेक्षा, मेरी ओर से अंतर्ध्यान और उपेक्षा। साली किसे प्रिय नहीं होती है, किन्तु मेरे साथ होने वाले सौतेलेपन ने मेरे मन में साली के प्रति ईर्ष्या का भाव भर दिया। ससुराल पक्ष मुझे गोखुरू का तीन मुँह सा कांटा लगने लगा। क्योंकि ससुराल वाले, अखबार के मुखपृष्ठ की हेडलाइन जिसे सब पढ़ते हैं और मैं अखबार के किसी कोने में छपा शोक समाचार हो गया। जिसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। मुख्य अतिथियों का अवैध कब्जा हुए आज नौ दिन और नौ रात हो चुकी हैं। मैं ही जानता हूँ कि किस प्रकार नौ रातें नव दुर्गा उत्सव में माता का जागरण समझकर काटी हैं। इसलिए मैंने उपेक्षा से ग्रस्त होकर दसवें दिन पत्नी से संबंध विच्छेद का कठोर निर्णय ले लिया। लेकिन अनहोनी को शायद साली ने भांप लिया और बोली अच्छा जीजाजी अब चलते हैं। हमने बहुत सोच।समझकर डरते-डरते कहा जैसी आपकी इच्छा।मुख्य अतिथियों के जाते ही श्रीमतीजी पुनः हमारे ऊपर धारा तेल की तरह प्यार उडेलने लगीं। कहावत है कि साल में एक बार घूरे के दिन भी फिरते हैं। उसी तरह मेरे दिन भी फिरे और मैं अपनी श्रीमतीजी के लिए एक बार फिर से अखबार के मुख्यपृष्ठ की हेडलाइन हो गया और संबंध विच्छेद होने से बच गया।

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किस्मत अपनी-अपनी

किस्मत अपनी-अपनी। जब भी यह शब्द सुनता हूँ या कहीं पढ़ता हूँ तो बहुत दु:ख होता है। क्योंकि हमारा गठबंधन बिना एग्रीमेंट के धोखे से गाँव की एक लड़की से हुआ था जिसे हम आज तक भुगत रहे हैं।अब चूंकि हमारी श्रीमतीजी अधिक पढ़ी-लिखी तो हैं नहीं और ऊपर से हमारा मकान ऑफिसर कॉलोनी में हैं। जहाँ सबकी बीवियाँ पढ़ी-लिखी हैं और मॉडर्न कल्चर में विश्वास रखती हैं। पति के साथ शान से स्कूटर पर एक हाथ कंधे पर और दूसरा कमर में डालकर बैठती हैं और फिर यदि थोड़ी बहुत दूरी रहती भी है तो नगर पालिका के सहयोग से सड़कों के गड्ढों से लगने वाले दचके उस दूरी को कम कर देते हैं। यदि फिर भी पति महोदय संतुष्ट नहीं होते तो एक जोरदार ब्रेक लगाकर बची-खुची दूरी को भी खत्म कर देते हैं। एक हम हैं जो कोरी कल्पना ही करते रहते हैं। क्योंकि हमारी एकमात्र श्रीमतीजी पहले तो स्कूटर पर बैठने से कतराती हैं, फिर भागीरथी प्रयास करने पर जैसे-तैसे बैठ भी जाती हैं तो मुझसे एकदम दूर स्टेपनी से चिपक कर। यानि मेरे और उसके बीच तलाक की प्रारम्भिक स्थितियों वाला एक फुट का फासला रहता है। यह देखकर तो मुझे लगता है कि यदि मैं स्कूटर में केरियर लगवा लूँ तो निश्चित ही वह एक फुट की दूरी को दो फुट में बदलकर केरियर पर बैठ जाएगी।मैंने उससे कई बार कहा किन्तु वह कॉलोनी की अन्य औरतों की तरह नही बैठती। कारण पूछो, तो कहती है कि लोग क्या कहेंगे ? आखिर गाँव की जो ठहरी, ऊपर से शिक्षा, मात्र मिडिल फेल, वो भी गाँव की पढ़ाई। अब इसी बात से बौद्धिक परीक्षण हो जाता है कि हमारी पडोसन कहती है ग से गणेश और श्रीमतीजी कहती हैं ग से गंवार। यदि शिक्षा से समझौता कर भी लूँ तो मोटी इतनी है कि स्कूटर में हवा फुल हो तो मित्र कमेंट पास करते हैं यार हवा तो भरवा लो। बाहर की बात तो छोड़िए घर में भी सहना और सुनना पड़ता है। एक बार मैं श्रीमतीजी के लिए सोने कि अंगूठी बनवाकर लाया तो मेरा ही बेटा मुझसे बोला पिताजी यह सोने कि चूड़ी किसकी है।आज तो हद ही हो गई। सुबह के समय डोर बैल बजी और श्रीमतीजी ने दरवाजा खोला। अखबार वाला था। अखबार हाथ में लेकर गाँव वाली स्टाइल में दरवाजे की देहरी पर ही बैठकर जोर-जोर से अखबार पढ़ने लगी। फिर अचानक न जाने क्या हुआ। अखबार लेकर तेजी से अपने कमरे में गई और दरवाजा बंद करके रोने लगी। मैंने दरवाजा खुलवाने के अनेकों असफल प्रयास किए किन्तु विफल रहे। मैंने कहा अच्छा अखबार ही दे दो। उत्तर न में था और फिर उस बदकिस्मत अखबार के फटने की अन्दर से आवाज आने लगी। मैंने सोचा थोड़ा रो लेगी तो मन हल्का हो जाएगा फिर अपने आप ही दरवाजा खोलेगी। वहाँ से उठकर मैं पड़ोसी का अखबार लाया और पढ़ने लगा। जैसे ही मैंने अखबार में विज्ञापन पढ़ा कि “पुरानी इस्त्री बदलकर नई इस्त्री ले जाइए” तो मैं समझ गया कि मिडिल फेल श्रीमतीजी ने जरूर यह विज्ञापन पढ़कर अपना मूड खराब किया होगा। मैंने श्रीमतीजी को कमरे के बाहर से आवाज लगाकर पूछा कि तुमने “पुरानी इस्त्री बदलकर नई इस्त्री ले जाइए” विज्ञापन पढ़ा है क्या ? वह अंदर से ही चिल्लाई, हाँ पढ़ा है और मुझे इसी बात का डर है कि तुम मुझे बदलकर कहीं दूसरी औरत न ले आओ। मैं समझ गया कि वह इस्त्री का अर्थ पत्नी से लगा बैठी है। मैंने उसे बहुत समझाया कि इस्त्री का अर्थ पत्नी नहीं बल्कि कपड़ों पर करने वाली इस्त्री अर्थात प्रेस है। तब जाकर उसने दरवाजा खोला। लेकिन जैसे ही दरवाला खुला, अन्दर का दृश्य देखकर मैं दंग रह गया। वह आत्महत्या की तैयारी कर रही थी। खैर, जान बची तो लाखों पाए। श्रीमतीजी को तो मैंने बचा लिया, अब ईश्वर मुझे बचाए।

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वेतन दिवस (पुरस्कृत हास्य-व्यंग्य)

कल रात को मेरा अपनी एक मात्र आदरणीय श्रीमतीजी से बिना कारण के उसके ही कर कमलों द्वारा स्वचालित विवाद हो गया और उसने अपने निजी संविधान में आंशिक संशोधन करके मुझ पर अमेरिका की तरह वीटो लगाते हुए अल्टीमेटम दे डाला कि मैं उससे कभी भी बात नहीं करूं। श्रीमतीजी का पारम्परिक रौद्र रूप देखकर मैंने अपनी स्थिति पर दृष्टिपात किया तो पाया कि मुझसे सत्ता छीन ली गई है और मैं अपदस्थ हो गया हूँ। मैंने भी आज्ञाकारी पति होने का प्रमाण देते हुए बिना कारण जाने उसकी बात का पालन करने की ठान ली और मौन व्रत ले लिया। अगले दिन सुबह होते ही मैं तैयार होकर हनुमान चालीसा पढ़ते हुए, माननीया धर्मपत्नी द्वारा रचित पारिवारिक संविधान की धारा चार सौ बीस उपधारा आठ सौ अस्सी के अंतर्गत, शोक सभा की तरह शांत एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाते हुए न बोलने वाले संकल्प का स्मरण करके, चुपचाप घर से निकलकर ऑफिस के लिए कूच कर गया। जब मैं ऑफिस पहुंचा तो चपरासी ने दोनों हाथों कि उंगलियों को गिनते हुए बताया कि आपके घर से पच्चीस बार फोन आया था। मेमसाहब कह रहीं थीं कि जैसे ही साहब आएं तुरन्त घर फोन करने को कहना। साहब आप सचमुच कितने किस्मत वाले हैं। मेमसाहब आपका कितना ध्यान रखतीं हैं। ऊपर वाला आप जैसी मेमसाहब सबको दे। चपरासी की यह बात मुझे व्यंग्य बाण सी चुभ रही थी क्योंकि कल रात को ही तो मुझे बात न करने का अल्टीमेटम मिला था। सोचते-सोचते मैं जैसे ही सीट पर बैठा था कि घंटी बजी और मैं समझ गया कि यह निश्चित ही श्रीमतीजी का फोन होगा क्योंकि मेरे फोन की पॉलीफोनिक रिंगटोन मोनो रिंगटोन जैसी लग रही थी। मैंने जैसे ही फोन उठाया श्रीमतीजी का बनावटी मधुर स्वर सुनाई दिया। क्योंजी, मैं आपके लिए नाश्ता बना रही थी और आप चुपचाप ही बिना बताए ऑफिस चले गए जैसे मैं आपकी कुछ लगती नहीं हूँ। देखो मुझे तुम्हारी कितनी चिन्ता रहती है। पता है अभी मुहल्ले में लोग चर्चा कर रहे थे कि एक पागल सा आदमी बस से टकराकर स्वर्ग सिधार गया। मुझे लगा कि कहीं तुम तो नहीं थे। मैं तो घबरा गई थी। भगवान का लाख.लाख शुक्र है कि मेरा सुहाग फिलहाल अभी तो सुरक्षित है। अब मैं कम से कम एक करवा चौथ का व्रत और रख सकूंगी। देखो जी मैं कह देती हूँ कि आज से घर के बाहर कहीं भी जाओ तो मुझे बताकर ही जाया करो। अच्छा यह बताओ। आज लन्च के खाने में तुम्हारे लिए क्या बनाऊं ? मैंने कहा कॉपीराइट (सर्वाधिकार सुरक्षित) तो तुम्हारे पास ही है। मैं तो मात्र तुम्हारी हिटलरी सेना का अंतिम सिपाही हूँ जो सारी सेना के परास्त हो जाने पर स्वयं ही बिना लड़ाई लड़े पराजित घोषित हो जाता है। श्रीमतीजी बोलीं, आज आप कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। वह अनवरत कथावाचक सी बोलती रही और मैं श्रोता सा सुनता रहा। कुछ देर बात श्रीमतीजी स्वयं ही बोलीं आप फोन पकडे-पकडे थक गए होगे इसलिए अब रखती हूँ। मुझे भी देर हो रही है। तुम्हारी पसन्द का भोजन भी बनाना है। वैसे भी खीर, पूडी, हलुआ वगैरह बनाने में समय लगता है कहकर उसने फोन रख दिया।मैं श्रीमतीजी की शकुनि चालों को समझ नहीं पाया कि मात्र बारह घंटे में इतना बडा परिवर्तन कैसे हो गया। स्वयं ही युद्ध की घोषणा करती है और स्वयं ही शांति समझौता करती है। सोचते.सोचते मैं अपने कार्य में व्यस्त हो गया। मेरे कार्य की एकाग्रता को भंग करते हुए श्रीमतीजी ने फोन किया और कहा कि लन्च हुए पन्द्रह मिनिट हो चुके हैं और आप अभी तक घर नहीं आए। मुझे बहुत जोर की भूख लगी है, तुम्हें खिलाए बगैर खा भी नहीं सकती। श्रीमतीजी की इस प्रकार असीम कृपा और विशेष स्नेह का कारण मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने दिमाग पर जोर डालना ठीक नहीं समझा क्योंकि मुझे तो खीर, पूडी और हलुआ खाने से मतलब था। इसके पीछे श्रीमतीजी का उद्देश्य चाहे जो भी हो। मन में ऐसा भाव लिए मैं घर की ओर चल दिया। आज श्रीमतीजी घर पहुंचने के पहले ही घर के बाहर मेरी प्रतीक्षा करती हुई ऐसी व्याकुल सी लग रहीं थीं जैसे मानों एक दुल्हन अपने दरवाजे पर बारात आने की प्रतीक्षा करती है। घर पहुंचते ही श्रीमतीजी तुरन्त बोलीं कितनी देर कर दी आपने, मेरे तो भूख के मारे प्राण ही निकले जा रहे हैं। घर में प्रवेश करते ही व्यंजनों की सुगंध ने मेरी भूख और बढ़ा दी। श्रीमतीजी ने डायनिंग टेबिल पर भोजन लगाया ही था कि दुर्भाग्य से विद्युत विभाग की कृपा हुई और पंखा बन्द हो गया। लेकिन विद्युत विभाग के दुर्भाग्य में ही मेरा सौभाग्य था क्योंकि श्रीमतीजी अपने बेशकीमती साडी के पल्लू से वायुदेव को चिढ़ाते हुए मेरी हवा करती रहीं और मैं प्रेमपूर्वक भोजन करता रहा। मेरे भोजन करने की नियंत्रित गति सीमा को देखकर श्रीमतीजी ने कहा। प्लीज, जल्दी खाइए न मुझे बहुत भूख लगी है, जब आप खा लेंगे तब ही मैं खाऊंगी। भोजन करके मैं पुनः ऑफिस के लिए रवाना हुआ तो श्रीमतीजी मुझे द्वार तक छोड़ने आईं और अंग्रेजों का अनुसरण करते हुए पहली बार बाय-बाय डार्लिंग कहा और बोलीं आज ऑफिस से जल्दी घर आ जाना। मैं तुम्हारे वगैर एक पल भी नहीं रह सकती। मैंने गूंगे की तरह हाँ की मुद्रा में अपने सिर को हिलाया और आगे बढ़ गया।ऑफिस में कार्य की व्यस्तता के कारण समय का पता ही नहीं चला कि चार कब बज गया। वह भी पता नहीं चलता यदि श्रीमतीजी फोन नहीं करतीं कि चार बज गया है। छुट्टी होने में अभी एक घंटा बाकी है। आज तो मेरी खातिर जल्दी घर आ जाइए, मैं जब तक चाय बनाती हूँ। घर का मुखिया होते हुए भी श्रीमतीजी की बात का पालन करने को मैं उतना ही मजबूर था जितना कि मनमोहन सिंह श्रीमती सोनिया गांधी की बात का पालन करने को मजबूर हैं। मैं तो अपनी श्रीमतीजी के लिए वह टी० वी० हूँ जिसका पावर सप्लाई वाला ऑन.ऑफ स्विच खराब है। टी० वी० केवल रिमोट से ही कार्य करता है और वह रिमोट आदरणीय श्रीमतीजी के पास है। मैं आदेश का पालन करते हुए घर को रवाना हुआ। द्वार पर पहुंचते ही मैंने देखा कि श्रीमतीजी की आँखे बिना पलक झपके ठीक उसी तरह मेरी राह देख रही थीं जैसे सबरी ने भगवान राम की राह देखी थी। मुझे देखते ही वह क्लोजअप टूथपेस्ट के विज्ञापन की सी मुस्कान बिखेरकर मुझ पर स्नेह वर्षा करते हुए शब्दों के फूल चढ़ाने लगी। इस प्रकार स्नेह वर्षा से मैं जितना प्रसन्न था मन ही मन उतना आशंकित भी था क्योंकि मुझे लगता है कि पिछली सात पीढी तक हमारे खानदान में कोई भी इतना प्रसन्न नहीं रहा होगा। ऐसे में मेरा आशंकित होना सही था। घर में प्रवेश करते ही श्रीमतीजी बोलीं आज दूध वाले का, अखबार वाले का, राशन वाले का हिसाब करना है। कल बच्चों की फीस जमा करना है। टेलीफोन का बिल जमा करना है। आज तो महीने की पहली तारीख है आपको वेतन मिला होगा। लाइए मैं संभालकर रख देती हूँ। कहकर श्रीमतीजी ने मासिक वेतन छीनकर मुझे सत्ताविहीन सा कर दिया। श्रीमतीजी के इन शब्दों को सुनकर उसकी स्नेह वर्षा का राज मेरी समझ में आ गया था कि आज जो वेतन मिला है यह उसे हड़पने की रणनीति थी। वरना बारह घंटे पहले हुआ युद्ध, शांति समझौते में कैसे परिवर्तित हो गया। मैं एक बार फिर चिड़िया के बच्चे की तरह धीरे-धीरे महीने भर में पंख तैयार होते ही उड़ना सीखूंगा और फिर एक माह पूरा होने पर श्रीमतीजी रूपी बहेलिए के जाल में वेतन दिवस वाले दिन पंख काटकर फिर छला जाऊंगा।     

कुकर

कुकर में
चावल चढाने के बाद
पतिदेव घंटों खड़े रहे
सीटी के इंतजार में अड़े रहे
मगर सीटी नहीं आई
तभी बाजार से
उनकी पत्नी आई
पत्नी के आते ही कुकर ने
तुरन्त सीटी बजाई
यह देख
पतिदेव गुस्से में बोले
आजकल के लड़के तो लड़के
कमबख्त कुकर भी
अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं
पत्नी के आते ही
तुरन्त सीटी बजाते हैं ।

फिल्मों का असर

कमला ने
विमला से कहा
मुझे
फिल्म देखने से डर लगता है
सुना है
महिलाओं पर इसका
बुरा असर पड़ता है
क्योंकि
जब मैंने देखी थी
फिल्म “राम और श्याम”
मेरे होश उड़ गए
एक साथ
दो लड़के हो गए
सुनते ही विमला ने
कमला की बात को प्रमाणित करते हुए
अपनी चुप्पी तोड़ी और
धीरे से बोली
मेरी तो मारी गई थी मती
मैंने भी देखकर
फिल्म “गंगा, यमुना और सरस्वती”
इस बात को परख लिया
क्योंकि मुझे भी हुईं थीं
एक साथ तीन लड़कियाँ
यह सुनकर
पास खडी रानी
सुनाने लगी अपनी कहानी
और
मचाते हुए शोर बोली
हाय राम मेरा क्या होगा
मैंने तो देखी थी
फिल्म “अली बाबा और चालीस चोर” ।

घरेलू मंत्रीमंडल

नई बहू
जब ससुराल आई तो
सास फूली नहीं समाई
लेकिन
भविष्य में बहू हावी न हो
सोचकर सास घबराई
तो उसने
कूटनीति से काम लिया
भारतीय नेताओं को आदर्श मान लिया
और
बहू से कहा
सुनो स्नेहा
मेरे पास इस घर का वित्त मंत्रालय है
तुम्हारे ससुर ने गृह मंत्रालय चुना है
बेटी योजना मंत्री और
छोटा बेटा विदेश मंत्री बना है
तुम्हारे पति ने
खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री की भूमिका निभाई है
लेकिन
तुम कौन सा विभाग संभालोगी
अपनी योजना
अभी तक नहीं बताई है
तुम हमारी बहू हो
इसलिए
स्वयं अपना विभाग चुनो
हमने
यह अधिकार तुम्हें दिया है
चतुर बहु ने तुरन्त कहा
अब मंत्रीमंडल में कुछ नहीं बचा है
इसलिए
मैंने विपक्ष में बैठना पसंद किया है ।

एन्टी वायरस

तुम
जब भी झूठ बोलते हो
मेरे दिल में
वायरस आ जाता है
इसका “एन्टी वायरस”
बाजार में नहीं ढूँढना पड़ता है
बस झूठ की जगह
सच बोलना पड़ता है।

पासवर्ड

मैं
तुम्हें
अपने दिल में बसाकर
पासवर्ड डालना चाहता हूँ
सच तो यह है
कि
पासवर्ड भी भूलना चाहता हूँ।

कंट्रोल

तुम
माउस पर
उंगली चलाती रहो
मैं
करसर बनकर
स्क्रीन पर दिखूंगा
ताकि
तुम्हारे कंट्रोल में रह सकूं।

दिल का पासवर्ड

सब कहते हैं
मेरी मेमोरी तेज है
लेकिन
मैं कहता हूँ
कि
मैं भुलक्कड़ हूँ
देखो न
जब से तुम
मेरे दिल में बसी हो
दिल का पासवर्ड भूल गया हूँ।

नया वायरस

मेरे दिल के पी सी में
नया वायरस आ गया है
स्केन करने पर
तुम्हारे पिता
और
भाई का नाम बता रहा है।

भाई

पान वाले ने
नेताजी को आवाज लगाई
सुनो भाई
कहाँ से आ रहे हो
बिना मिले ही जा रहे हो
नेताजी पान वाले के पास आए
गुस्से में तिलमिलाए और बोले
तुमने मुझे
भाई क्यों कहा
पान वाला बोला
क्यों नाराज होते हैं
अरे हम पान में चूना लगाते हैं
आप पब्लिक को चूना लगाते हैं
इस नाते
हम आपके भाई कहलाते हैं।

वाशिंग मशीन

नाराज पत्नी
मुझे देखकर
मुँह मोड़ने लगी
वाशिंग मशीन सही थी
फिर भी
हाथ से कपड़े निचोड़ने लगी
मैं समझ गया
आज मेरी खैर नहीं।

कॉल गर्ल

कलयुगी बेटे ने
आधुनिक पिता से कहा
डेडी इधर आओ
कॉल गर्ल किसे कहते हैं
बताओ
सुनते ही
पिता सकुचाया
बेटे के निकट आया
और बोला
बेटा धर्मेन्दर
तुमने सुना होगा
शहरों में होते हैं टेलीफोन के कॉल सेंटर
वहाँ काम करतीं हैं जो गर्ल
उन्हें कहते हैं कॉल गर्ल
लेकिन बेटे
कोई भी प्रश्न
यूँ ही खुले आम नहीं पूछते
अच्छा यह बताओ
तुम्हें यह प्रश्न कहाँ से सूझा
बेटा बोला
हमें मत सिखाओ
पहले आप बताओ
यह उत्तर आपको कहाँ से सूझा।

प्रिय हीरोइन

मैं और मेरी बीवी
देख रहे थे टी वी
टी वी देखने का कारण था यूँ
हमारा मनपसन्द कार्यक्रम
फिल्मों हस्तियों का आ रहा था इंटरव्यू
पत्नी के साथ हम भी ले रहे थे आनंद
संचालन कर रहे थे देवानंद
मंच पर
बलखाती हुई एक हसीना आई
आते ही मुस्कुराई
कोशिश करने पर भी जब
मैं उसे पहचान नहीं पाया
तो मैंने दिमाग पर जोर लगाया
पत्नी बोली
दिमाग पर इतना जोर डालने की
क्या है जरूरत
यह है आपकी प्रिय हीरोइन मल्लिका शेरावत
और
आपकी आँखें इसे
इसलिए नहीं पहिचान पाई हैं
क्योंकि
आज यह पूरे कपड़े पहनकर आई है।

चश्मा

प्रेमिका को पाने के लिये
प्रेमी ने कहा
प्रिय
तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर जो
माइनस फाइव का चश्मा लगता है
बिल्कुल नहीं जमता है
इसे लगाने से
तुम्हारी खूबसूरती भी
माइनस फाइव हो गई है
इसलिए
ऐसा करो
अपने जीवन से ही
चश्मे को माइनस करो
और
बिना चश्में के कुछ नहीं दिखेगा
इस बात की चिन्ता मत करो
मैं तुम्हारे काम आऊँगा
जहाँ भी जाना होगा
हाथ पकड़कर ले जाऊँगा
प्रेमिका बोली
खबरदार
मैं हूँ
तुमसे ज्यादा समझदार
इडियट
नॉनसेन्स
कल से लगाऊँगी मैंकॉन्टेक्ट लेन्स।